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Tuesday, September 16, 2025

10G INTERNET SPEED IN CHINA VS 5G INTERNET SPEED IN INDIA


आप और मैं अपने फोन पर 5G की तेज स्पीड का मजा ले रहे हैं, और बिना अटके 4K वीडियो देखकर खुश हो रहे हैं. लेकिन, क्या हो अगर मैं आपसे कहूँ कि जिस वक्त हम भारत में 5G का जश्न मना रहे हैं, ठीक उसी वक्त चीन ने एक ऐसी इंटरनेट टेक्नोलॉजी टेस्ट कर ली है जो आपके 5G से 100 गुना तेज है? वीडियो का टाइटल पढ़कर आपको लगा होगा कि "100 साल पीछे" कहना कुछ ज़्यादा हो गया. लेकिन जब आप असलियत जानेंगे, तो यह खाई आपको वाकई में सदियों जितनी बड़ी लगने लगेगी. यह सिर्फ डाउनलोड स्पीड की बात नहीं है. यह एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो भविष्य के युद्धों से लेकर दुनिया की इकोनॉमी तक, सब कुछ बदलने की ताकत रखती है. और इस दौड़ में भारत दशकों पीछे छूटता हुआ दिख रहा है. यह कोई क्लिकबेट नहीं, बल्कि वो हकीकत है जो हमारी आँखों के सामने हो रही है. चलिए समझते हैं कि ये सब हो कैसे रहा है और इसका असर आप पर, मुझ पर और भारत के भविष्य पर क्या पड़ने वाला है. सबसे पहले एक बात साफ कर दूँ. हम यहाँ किसी मोबाइल के 6G, 7G या भविष्य के 10G की बात नहीं कर रहे हैं. यह एक वायर्ड ब्रॉडबैंड नेटवर्क है, जिसे चीन ने अप्रैल 2025 में दुनिया के सामने रखा है. इसे हुआवे (Huawei) और चाइना यूनिकॉम (China Unicom) जैसी विशाल कंपनियों ने मिलकर तैयार किया है. तो स्पीड कितनी है? तैयार हो जाइए. इस नेटवर्क पर डाउनलोड स्पीड लगभग 9,834 Mbps तक पहुँचती है. अपलोड स्पीड 1,008 Mbps है. अब इन नंबरों का मतलब समझिए. भारत में आज औसत फिक्स्ड ब्रॉडबैंड स्पीड करीब 60 से 70 Mbps के बीच है. इसका मतलब, चीन का ये नया नेटवर्क, भारत की औसत वायर्ड इंटरनेट स्पीड से 160 गुना से भी ज्यादा तेज है. इस स्पीड से होता क्या है? सोचिए, एक 20GB की 4K फिल्म, जिसे डाउनलोड करने में अभी आपको शायद घंटे लग जाते हैं, वो इस नेटवर्क पर सिर्फ 20 सेकंड से भी कम में डाउनलोड हो जाएगी. एक बहुत भारी 90GB की 8K वीडियो फाइल सिर्फ एक मिनट में आपके डिवाइस में होगी. इस नेटवर्क की लेटेंसी, यानी डेटा को एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक जाने में लगने वाला समय, सिर्फ 3 मिलीसेकंड है. मतलब, एकदम रियल-टाइम कम्युनिकेशन, बिना पलक झपकाए. और चीन इसे लॉन्च कहाँ कर रहा है? किसी आम शहर में नहीं. इसकी शुरुआत शिओंग'आन (Xiong'an) जैसे इलाकों से हुई है, जो चीन के भविष्य के 'स्मार्ट शहर' हैं. ये कोई छोटा-मोटा टेस्ट नहीं, ये एक बहुत बड़ी और सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. चीन अपने भविष्य के शहरों की नींव आज ही रख रहा है, एक ऐसी नींव जिस पर दौड़ने वाली टेक्नोलॉजी के बारे में हम और आप अभी सिर्फ बातें ही कर रहे हैं. भारत की हकीकत - इस दौड़ में हम कहाँ हैं? अब आते हैं अपने देश, भारत पर. इसमें कोई शक नहीं कि हमने डिजिटल दुनिया में लंबी छलांग लगाई है. 5G आने के बाद तो हमारी मोबाइल इंटरनेट स्पीड रॉकेट बन गई. मोबाइल स्पीड की ग्लोबल रैंकिंग में हम 119वें पायदान से सीधे 26वें पायदान पर आ गए, और हमारी औसत मोबाइल डाउनलोड स्पीड 136 Mbps को भी पार कर गई है. आज दुनिया में सबसे ज्यादा मोबाइल डेटा भारत में इस्तेमाल हो रहा है. ये आंकड़े सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं और हमें इन पर गर्व भी होना चाहिए. लेकिन कहानी का एक दूसरा पहलू भी है, जो असली चिंता की वजह है. जब हम इस रेस की तुलना चीन के 10G नेटवर्क से करते हैं, तो हमें मोबाइल की नहीं, फिक्स्ड ब्रॉडबैंड की तुलना करनी होगी, क्योंकि चीन का नेटवर्क भी वायर्ड है. और यहाँ आकर सारी तस्वीर बदल जाती है. जैसा मैंने बताया, भारत की औसत फिक्स्ड ब्रॉडबैंड स्पीड 60-70 Mbps के आस-पास है, और दुनिया में हमारी रैंकिंग 80 से 100 के बीच झूलती रहती है. अब आप खुद सोचिए, कहाँ चीन की 9,834 Mbps की स्पीड और कहाँ हमारी 60-70 Mbps की स्पीड. ये गैप बहुत, बहुत बड़ा है. ये सिर्फ एक टेक्नोलॉजी का अंतर नहीं है, ये एक पूरी पीढ़ी का अंतर है. ये कुछ ऐसा है, जैसे कोई बुलेट ट्रेन का मुकाबला करने के लिए बैलगाड़ी लेकर निकल पड़ा हो. जब तक हम अपनी ब्रॉडबैंड स्पीड को दोगुना या तिगुना करने की सोचेंगे, चीन शायद इससे भी 20 कदम आगे निकल चुका होगा. सवाल ये है कि चीन ये सब कर कैसे रहा है? चीन की ये कामयाबी कोई एक रात का चमत्कार नहीं है. इसके पीछे दशकों की प्लानिंग, जबरदस्त इच्छाशक्ति और अरबों-खरबों डॉलर का निवेश है. इसके तीन मुख्य कारण हैं: पहला और सबसे बड़ा कारण - सरकार का विज़न. चीन ने 'मेड इन चाइना 2025' जैसी राष्ट्रीय रणनीतियां बहुत पहले ही बना ली थीं. इनका एक ही लक्ष्य था - चीन को टेक्नोलॉजी का खरीदार नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता और लीडर बनाना. जब हमारी सरकारें अक्सर अगले चुनाव की तैयारी में व्यस्त रहती हैं, चीन अगली पीढ़ी की तकनीक पर चुपचाप काम कर रहा होता है. ये एक देश का लॉन्ग-टर्म प्लान है. दूसरा कारण - इकोसिस्टम बनाना. ये 10G नेटवर्क किसी छोटी-मोटी कंपनी का प्रोजेक्ट नहीं है. इसके पीछे हुआवे जैसी दुनिया की सबसे बड़ी टेलीकॉम उपकरण बनाने वाली कंपनी और चाइना यूनिकॉम जैसी सरकारी टेलीकॉम कंपनी खड़ी है. चीन सिर्फ नेटवर्क नहीं बना रहा; वो उस नेटवर्क पर चलने वाले डिवाइस, सॉफ्टवेयर और AI एप्लीकेशन भी खुद ही बना रहा है. ये एक पूरा इकोसिस्टम है, जहाँ हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर तक सब कुछ आपस में जुड़ा है, जो इनोवेशन को और भी तेज कर देता है. तीसरा कारण है - सही जगह पर फोकस. चीन ने अपनी पूरी ताकत उन तकनीकों पर झोंक दी है जो भविष्य को कंट्रोल करेंगी. वो समझ गया कि डेटा ही नया तेल है, और जो इस तेल को सबसे तेजी से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाएगा, वही दुनिया पर राज करेगा. इसीलिए उन्होंने 5G, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और अब इस 10G ब्रॉडबैंड जैसी بنیادی टेक्नोलॉजी पर अपना पूरा ध्यान लगाया. अगर आपको यह जानकारी वाकई में चौंकाने वाली लग रही है और आप भारत के भविष्य की परवाह करते हैं, तो इस वीडियो को लाइक करके हमारा हौसला बढ़ाएं. यह आवाज ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचनी चाहिए. असली खतरा - भारत के लिए इसका मतलब क्या है?
ये सिर्फ स्पीड के नंबरों का खेल नहीं है. यह अंतर भारत के लिए तीन बहुत बड़े खतरे पैदा करता है: आर्थिक, सामरिक और भू-राजनीतिक. पहला खतरा है आर्थिक. आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड गेमिंग, सेल्फ-ड्राइविंग कारों, रिमोट सर्जरी और मेटावर्स जैसी टेक्नोलॉजी का है. इन सभी को काम करने के लिए एक बेहद तेज और भरोसेमंद नेटवर्क चाहिए. जिस देश के पास यह डिजिटल हाईवे होगा, वही इन खरबों डॉलर की इंडस्ट्रीज पर राज करेगा. अगर हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर ही कमजोर रह गया, तो हम इन नई टेक्नोलॉजी के सिर्फ ग्राहक बनकर रह जाएंगे, इनके निर्माता कभी नहीं बन पाएंगे. हमारी आने वाली पीढ़ियां दूसरे देशों की कंपनियों के लिए काम करेंगी, अपनी कंपनियां नहीं बना पाएंगी. दूसरा और सबसे गंभीर खतरा है - हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का. भविष्य के युद्ध मिसाइलों और टैंकों से ज्यादा, डेटा और साइबर हमलों से लड़े जाएंगे. चीन का यह नेटवर्क उसकी सेना को एक ऐसी ताकत दे सकता है जिसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते. AI से चलने वाले ड्रोन, हाइपरसोनिक मिसाइलें जिन्हें रियल-टाइम डेटा फीड चाहिए, और पूरे शहर पर नजर रखने वाले जासूसी सिस्टम - ये सब इसी 10G नेटवर्क की रीढ़ की हड्डी पर काम करेंगे. जब दो देशों में तनाव बढ़ता है, तो टेक्नोलॉजी का यही अंतर हार और जीत तय कर सकता है. तीसरा खतरा है - दुनिया में हमारी हैसियत का. 21वीं सदी में किसी देश की ताकत सिर्फ उसकी सेना या इकोनॉमी से नहीं, बल्कि उसकी टेक्नोलॉजी से तय होती है. जो देश डिजिटल स्टैंडर्ड बनाता है, जो दुनिया को टेक्नोलॉजी बेचता है, वही दुनिया के नियम भी तय करता है. चीन इस 10G नेटवर्क के जरिए अमेरिका को सीधी चुनौती दे रहा है और एक नया टेक्निकल वर्ल्ड ऑर्डर बनाने की फिराक में है. सवाल यह है कि इस नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत कहाँ खड़ा होगा? क्या हम एक लीडर बनेंगे, या सिर्फ एक फॉलोवर बनकर रह जाएंगे? आगे का रास्ता - क्या भारत पलटवार कर सकता है? ये सब सुनकर निराशा हो सकती है, लेकिन उम्मीद अभी बाकी है. सवाल ये नहीं है कि 'क्या भारत मुकाबला कर सकता है?' भारत के पास दुनिया के सबसे होनहार युवा हैं, हमारे स्टार्टअप्स दुनिया में कमाल कर रहे हैं, और हमारे इंजीनियरों ने हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. असली सवाल यह है: 'क्या हम मुकाबला करने के लिए सच में तैयार हैं?' हमें यह मानना होगा कि सिर्फ मोबाइल डेटा सस्ता कर देने से या मोबाइल स्पीड बढ़ाने से हम टेक्नोलॉजी के सुपरपावर नहीं बन सकते. हमें अपनी नींव मजबूत करनी होगी. इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने ही होंगे: पहला, 'भारतनेट' जैसे फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाने वाले प्रोजेक्ट्स में जंग की तरह तेजी लानी होगी, ताकि हाई-स्पीड वायर्ड ब्रॉडबैंड हर गांव और हर घर तक पहुंचे. दूसरा, हमें सिर्फ सॉफ्टवेयर और ऐप्स बनाने से आगे सोचना होगा. हमें डीप-टेक और हार्डवेयर रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) में भारी निवेश करना होगा. हमें अपने खुद के हुआवे और अपने क्वालकॉम बनाने होंगे. और तीसरा, सरकार को एक साफ और लॉन्ग-टर्म विज़न के साथ नीतियां बनानी होंगी, जो अगले 20-30 सालों को ध्यान में रखकर बनें, न कि सिर्फ अगले चुनाव को देखकर. इनोवेशन और मैन्युफैक्चरिंग को पहली प्राथमिकता देनी होगी. हमें एक डेटा इस्तेमाल करने वाले देश की मानसिकता से बाहर निकलकर, एक टेक्नोलॉजी बनाने वाले देश की तरह सोचना होगा. चीन ने ये करके दिखाया है. अब बारी हमारी है. तो दोस्तों, आज की कहानी का सार ये है कि चीन का 10G नेटवर्क सिर्फ एक तेज इंटरनेट नहीं है, यह भविष्य पर अपना हक जताने का एक तरीका है, दुनिया की नंबर एक तकनीकी महाशक्ति बनने का दावा है. जब हम अपनी 5G की छोटी-छोटी जीतों का जश्न मना रहे हैं, हमें उस बड़ी दौड़ को नहीं भूलना चाहिए जिसमें हम शायद पीछे छूट रहे हैं. यह सिर्फ डाउनलोड स्पीड की लड़ाई नहीं है, यह भारत की अगली पीढ़ी के भविष्य की लड़ाई है. इस बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि भारत चीन की इस रफ्तार का मुकाबला कर पाएगा? और हमारी सरकार को और हमें इसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए? नीचे कमेंट्स में अपनी राय जरूर बताएं. आपकी आवाज मायने रखती है.