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Sunday, November 9, 2025

पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम 1996 | Fifth Schedule & PESA Act 1996

 


पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम 1996 | Fifth Schedule & PESA Act 1996

🔹 पांचवीं अनुसूची का परिचय

भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची उन प्रावधानों से संबंधित है जो अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए बनाए गए हैं।

🔹 अनुच्छेद 244(1)

  • पांचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में लागू होते हैं।

  • इन चारों राज्यों के लिए छठी अनुसूची लागू होती है।

🔹 पांचवीं अनुसूची से संबंधित प्रमुख राज्य

वर्तमान में 10 राज्यों में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र चिन्हित हैं —
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश।

🔹 मध्य प्रदेश में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत जिले

झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, खंडवा, बैतूल, सिवनी, मंडला, बालाघाट, मुरैना और रतलाम (सैलाना तहसील)।

🔹 अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा

  • किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है।

  • राष्ट्रपति, संबंधित राज्यपाल से परामर्श के बाद क्षेत्रफल बढ़ा या घटा सकता है।

🔹 राज्य व केंद्र की कार्यकारी शक्तियाँ

  • राज्य की कार्यकारी शक्ति अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित है।

  • केंद्र सरकार राज्य को इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में निर्देश दे सकती है।

  • राज्यपाल को प्रत्येक वर्ष अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी होती है।

🔹 जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC)

  • प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है।

  • परिषद में 20 सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन-चौथाई (15 सदस्य) राज्य विधानसभा के अनुसूचित जनजाति वर्ग से होने चाहिए।

  • इसका उद्देश्य जनजातीय कल्याण से संबंधित नीतियों पर राज्यपाल को सलाह देना है।

🔹 राज्यपाल की शक्तियाँ

राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं –

  • शांति एवं सुशासन के लिए नियम बनाना।

  • भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाना।

  • अनुसूचित जनजातियों के लिए भूमि आवंटन के नियम बनाना।

  • साहूकारी व्यवसाय को नियंत्रित करना।

  • किसी राज्य या संसद के कानून को अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू न करने या संशोधित रूप में लागू करने का अधिकार।

🟢 पेसा अधिनियम 1996 (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act, 1996)

🔹 पृष्ठभूमि

  • संविधान के 73वें संशोधन (1992) द्वारा पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई (24 अप्रैल 1994)।

  • लेकिन अनुच्छेद 243(एम) के अनुसार, पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं थी।

  • भूरिया समिति (1995) की सिफारिशों पर पेसा अधिनियम, 1996 अस्तित्व में आया।

🔹 मुख्य उद्देश्य

  1. अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय स्वशासन को मान्यता देना।

  2. ग्राम सभाओं को भूमि, जल, वन और खनिज संसाधनों पर अधिकार प्रदान करना।

  3. जनजातीय परंपरा और संस्कृति के संरक्षण हेतु स्वायत्त शासन प्रणाली सुनिश्चित करना।

🔹 मध्य प्रदेश में पेसा नियम 2022

  • 15 नवम्बर 2022 (जनजातीय गौरव दिवस) पर मध्य प्रदेश ने अपने पेसा नियमों को अधिसूचित किया।

  • शहडोल में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेसा नियमावली की प्रति भेंट की।

  • इसका उद्देश्य जनजातीय समाज को ग्राम स्तर पर अधिकार संपन्न बनाना है।

🔹 पेसा अधिनियम की मूल भावना

ग्राम सभा सर्वोपरि है” —
ग्राम सभा ही स्थानीय संसाधनों, सामाजिक न्याय, और पारंपरिक निर्णय प्रणाली की सर्वोच्च इकाई मानी गई है।

🔹 सारांश

पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम भारत के जनजातीय समाज के लिए संवैधानिक सुरक्षा कवच हैं।
इनका उद्देश्य जनजातियों की भूमि, संस्कृति और आत्मनिर्भरता की रक्षा करते हुए उन्हें शासन में भागीदार बनाना है।

जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

 


जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

🔹 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1931 की जनगणना से पहले जनजातियों को “वनवासी”, “आदिवासी” या “गिरीजन” कहा जाता था।

  • 1931 की जनगणना के कमिश्नर जे.एच. हट्टन ने इन्हें पहली बार “आदिम जाति” के रूप में वर्गीकृत किया।

  • बेरियर एल्विन ने इन्हें “भारत का मूल स्वामी” बताया और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण हेतु “राष्ट्रीय उपवन” की अवधारणा दी।

  • जी.एस. घुर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India में इन्हें “पिछड़े हिन्दू” कहा।

  • ठक्कर बापा ने अपनी पुस्तक Tribes of India (1950) में इन्हें “गिरीजन” कहा।

  • ब्रिटिश शासन में इन्हें “एनिमिस्ट” कहा जाता था, पर 1931 में “जनजाति” शब्द का प्रयोग किया गया।


🔹 संविधानिक परिभाषा

  • अनुच्छेद 366(25) – “अनुसूचित जनजाति” का अर्थ उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों से है जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो।

  • अनुच्छेद 342 – राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श कर किसी जनजाति को अनुसूचित घोषित कर सकता है।


🔹 जनजातीय कल्याण हेतु प्रमुख संवैधानिक उपबंध

अनुच्छेदप्रावधानउद्देश्य
15(4), 15(5)शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान हेतु विशेष प्रावधान एवं आरक्षणशिक्षा में समान अवसर
16(4), 16(4A)रोजगार एवं पदोन्नति में आरक्षणप्रशासनिक प्रतिनिधित्व
23-24जबरन श्रम, बाल श्रम पर प्रतिबंधशोषण से सुरक्षा
29भाषा, लिपि एवं संस्कृति की रक्षासांस्कृतिक संरक्षण
46अनुसूचित जाति-जनजाति के शैक्षिक-आर्थिक हितों का संवर्धनसामाजिक न्याय
164उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में “आदिवासी कल्याण मंत्री”नीति-निर्माण में भागीदारी
243Dपंचायतों में आरक्षणस्थानीय स्वशासन में सहभागिता
330-332लोकसभा व विधानसभा में आरक्षणराजनीतिक प्रतिनिधित्व
334आरक्षण अवधि का विस्तार (2030 तक)निरंतर संरक्षण
275केंद्र द्वारा राज्यों को विशेष अनुदानजनजातीय क्षेत्र का विकास

🔹 विशेष अधिनियम व नीतियाँ

  • बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम, 1976

  • अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकार अधिनियम), 2006

  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम – PESA, 1996

Saturday, October 25, 2025

संविधान के भाग और उनकी साज सज्जा (illumination) प्रस्तावना यानी (Back cover) सहित संविधान के प्रत्येक पृष्ठ की साज सज्जा - बेहर राममनोहर सिन्हा तथा नंदलाल बोस (शांति निकेतन कलाकार)

 













































यह पोस्ट Rudra’s IAS द्वारा तैयार की गई है।

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Friday, October 24, 2025

समाजवाद (Socialization) A टू Z | समाजवाद क्या है | समाजवाद के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

 


समाजवाद का अर्थ

समाजवाद से तात्पर्य एक ऐसी विचारधारा से है जो एक स्वस्थ समाज के निर्माण को प्राथमिकता देती है।

स्वस्थ समाज से तात्पर्य एक ऐसे समाज से है जिसमें बड़े पैमाने पर सामाजिक - आर्थिक पर असमानता विधमान न हो तथा लोगों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान जीवन अवसर प्राप्त हों। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान युक्त जीवन जीने का अधिकार हो. तात्पर्य यह है कि समाज में कोई मूलभूत अधिकारों एवं सुविधाओं से वंचित न हो.

समाजवाद और साम्यवाद में भेद

समाजवाद समाज में व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने का पक्षधर होता है। इसीलिए कई बार इसे साम्यवाद भी कहा जाता है। हलांकि साम्यवाद की तुलना में समाजवाद काफी व्यापक अवधारणा है। साम्यवाद केवल सामाजिक आर्थिक असमानता को कायम करने का पक्षधर होता है, जबकि समाजवाद समानता के साथ साथ सामाजिक न्याय, समाज कल्याण तथा समाज को शक्तिशाली बनाने का पक्षधर होता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि



ऐतिहासिक आधार पर ग्रीक विद्वान प्लैटो को समाजवाद का जनक माना जाता है। हालांकि प्लैटो समाजवाद का समर्थन राज्य को ताकतवर बनाने के लिए करता है।

कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक कहते हैं। समाजवाद से जुड़ी मार्क्स की व्याख्या को मार्क्सवाद कहा जाता है मार्क्स पूंजीवाद के विरोधी थे। उन्होने अपनी पुस्तक दास कैपिटल में पूंजी को समाज की सबसे बड़ी बुराई माना। उन्होने पूंजीवाद के खिलाफ सर्वहारा वर्ग की क्रांति एवं वर्ग संघर्ष का समर्थन किया। समाजवाद समय और स्थान के सापेक्ष रूप बदलता गया।

लेनिनवाद

रूस की क्रांति (1917) के नायक ब्लादीमीर लेनिन ने जार निकोलस द्वितीय के निरंकुश राजतंत्र के खिलाफ समाजवाद को हथियार बनाया और जनांदोलन के माध्यम से राजशाही को समाप्त करते हुए सोवियत गणराज्य की स्थापना की.

माओवाद

मार्क्सवाद का चीनी संस्करण माओत्से तुंग की देन है। आपके नेतृत्व में 1949 में चीनी क्रांति हुई और प्यूपल रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन हुआ। माओ का मानना था कि एक हिंसक क्रांति के द्वारा ही समता परक समाज की स्थापना की जा सकती है। उन्होने कहा कि सत्ता बन्दूक की नोक से निकलती है। उनका साम्यवाद कृषक वर्ग को न्याय प्रदान करने के लिए एक पीपुल्स वार का समर्थक था।

नक्सलवाद

माओवाद का भारतीय संस्करण नक्सलवाद के नाम से जाता है। इसके संस्थापक चारू मजूमदार व कान्हू सान्याल थे। 70 के दशक में आरम्भ हुआ नक्सलवाद सशस्त्र क्रांति के द्वारा सामाजिक आर्थिक असमानता लाने के लिए प्रयत्नशील है।

भारत में साम्यवाद का प्रभाव  

भारत में भी साम्यवाद का जन्म लगभग उसी समय हुआ जब सोवियत संघ में लेनिन व स्टालिन का साम्यवाद अपने चरम पर था। श्रीपद अमृत दांगे व मानवेन्द्र नाथ राय 26 दिसम्बर 1925 को भारत में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की।

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन पर साम्यवाद का प्रभाव

भारत के क्रांतिकारी दलों जैसे युगान्तर, अनुशीलन समिति तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोशिएशन पर भी साम्यवादी क्रांति का गहरा प्रभाव था। महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने बोल्सेविक की करतूत नामक उपन्यास में साम्यवादी क्रांति का समर्थन किया। सरदार भगत सिंह अपनी फांसी के दिन जर्मन मार्क्स वादी विचारक क्लैरा जेटकिन की पुस्तक रेमिनिसेंसेज ऑफ लेनिन (लेनिन की स्मृतियां) पढ़ रहे थें।

राम मनोहर लोहिया का नवसमाजवाद (लोहियावाद)

राम मनोहर लोहिया ने साम्यवाद और पूंजीवाद के स्थान पर नवसमाजवाद की अवधारणा दी। गांधी जी के प्रति अपार श्रद्धा का भाव रखने तथा अनेक मुद्दों पर विचारों की समानता होने के बावजूद लोहिया ने गांधी को पूर्ण नहीं माना।

गांधी और मार्क्स के प्रति अपार श्रद्धा का भाव रखने के बावजूद लोहिया गांधी और मार्क्स दोनों को पूर्ण नहीं मानते थे.

 उन्होंने यह विचार व्यक्त किया है गांधी और मार्क्स की सबसे बड़ी कमी यह है कि वे एक ही समस्या के अलग अलग पक्ष को महत्व प्रदान करते हैं। लोहिया ने मार्क्स, गांधी एण्ड सोशलिज्म नामक पुस्तक में मार्क्स और गांधी दोनों के सिद्धांतों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया।

वे साम्यवाद और पूंजीवाद के मध्य सामंजस्य स्थापित करने पर जोर देते हैं। उनका मानना था कि साम्यवाद दुनिया की आधी आबादी को भोजन देने में असमर्थ है और पूंजीवाद से एक स्वस्थ समाज की स्थापना सम्भव नहीं है।

लोहिया का मानना था कि एक स्वस्थ समाज पूंजीवाद और साम्यवाद के समन्वय से ही संभव है.

 उन्होंने ग्राम, जिला, प्रान्त एवं केन्द्र पर आधारित एक चतुस्तम्भी राजनीतिक व्यवस्था की परिकल्पना प्रस्तुत की, जो केन्द्रीकरण व विकेन्द्रीकरण के मध्य संतुलन स्थापित करता है।

नेहरु का फेबियन समाजवाद

जवाहर लाल नेहरू भी एक समाजवादी नेता थे, उनका समाजवाद फेबियन समाजवाद के नाम से जाना जाता है। फेबियन समाजवाद क्रांति की जगह लोकतांत्रिक रूपान्तरण में यकीन रखता है। उनका मानना था कि एक लोकतांत्रिक सरकार सामाजिक समता की स्थापना तथा सामाजिक न्याय का  सबसे सशक्त वाहक होती है।

उन्होने जमीनदारी उन्मूलन, कृषि योग्य भूमि के पुनर्वितरण एवं शिक्षा एवं रोजगार में समाज के कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण के लिए संविधान में अनेक संशोधन किये।

इंदिरा गांधी का समाजवाद

श्रीमति इंदिरा गांधी ने अपने पूरे शासन काल में समाजवादी विचारधारा को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। उन्होने गरीबी हटाओ का नारा दिया। गरीबी उन्मूलन हेतू बीस सूत्री कार्यक्रम चलाया, प्रीवी पर्स की समाप्ति की, बैंकों एवं उधोगों का सार्वजनीकरण किया।

जय प्रकाश नारायण समाजवाद

जय प्रकाश नारायण ने अमेरिका में समाजशास्त्र की पढ़ाई के दौरान आप कार्ल मार्क्स से अत्यंत प्रभावित हुए। 1922 में भारत आकर वे महात्मा गांधी से जुड़ गये। वे जवाहर लाल नेहरू के अच्छे दोस्त थे। वे विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन से जुडे। वे दलविहीन (पार्टीलेस) राजनीतिक व्यवस्था के समर्थक थे। वे चाहते थे कि जनता द्वारा ग्राम स्तर पर प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाय फिर ग्राम स्तर के प्रतिनिधि राज्य स्तर के प्रतिनिधियों का चुनाव करें और राज्य स्तर के प्रतिनिधि केन्द्र स्तर पर प्रतिनिधियों का चुनाव करें। इसलिए आजादी के बाद आपने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।

जात-पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को मोड़ दो

लेकिन जब 1971 से पूर्ण सत्ता में आने श्रीमति इंदिरा गांधी का तानाशाही रवैया लोकतंत्र को तार तार करने लगा तो उन्होंने 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से संम्पूर्ण क्रांति का आहवान किया। उन्होने नारा दिया जात-पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को मोड़ दो। 

सम्पूर्ण क्रांति का नारा

इसे सम्पूर्ण क्रांति इसलिए कहा गया क्योकि, यह मात्र सत्ता परिवर्तन से सम्बन्धित क्रांति नहीं थी। सम्पूर्ण क्रांति में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक क्रांति सहित कुल सात क्रांतियां शामिल थी।

सम्पूर्ण क्रांति का उद्देश्य इंदिरा शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता को उखाड़ फेकना था। समकालीन राजनीतिक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे क्षितिज पर वर्ष 1942 दिखाई दे रहा है।

25 जून 1975 यानी इमरजेंसी से सिर्फ एक दिन पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली की जिसमें तमाम प्रतिबन्धों के बावजूद करीब 7 लाख लोग इकठ्ठा हुए हर तरफ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यही कविता गूंज रही थी, कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हलांकि अगले ही दिन देश में राष्ट्रीय आपात लगा कर इस आन्दोलन को कुचल दिया गया। इमरजेंसी खत्म होने के बाद जनता पार्टी सरकार सत्ता में आयी।

                                                                                लेखक : सी एम मिश्रा 

 

Friday, September 19, 2025

संविधान सभा के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य (Imprtant facts related to constituent assembly)

 संविधान सभा की प्रथम बैठक 





संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर, 1946 ई० को नई दिल्ली स्थित काउंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में आयोजित की गई। 

सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को इस बैठक अध्यक्ष मनोनीत किया गया।

मुस्लिम लीग ने सभा का बहिष्कार करते हुए पाकिस्तान लिए पृथक संविधान सभा की मांग पर अड़ी रही। 

हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए। 

इस बैठक में 211 सदस्य शामिल हुए। आरम्भ में देशी रियासतों के प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में भागीदारी से मना कर दिया, लेकिन धीरे-धीरे रियासतें संविधान सभा में शामिल होने लगी। 

संविधान सभा की कार्यवाही

11 दिसंबर, 1946 ई. को डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इनके साथ साथ एच सी मुखर्जी ;हरेन्द्र कुमर मुखर्जीद्ध तथा वी टी कृृष्णामचारी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 

16 जुलाई 1948 को वी टी कृृष्णामचारी को संविधान सभा का दूसरा उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसंबर, 1946 ई. को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुईं।  

आजादी के बाद संविधान सभा की दोहरी भूमिका

देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई. को किया गया। अब संविधान सभा दोहरी भूमिका में आ गई्र, संविधान निर्मात्री सभा के साथ-साथ इसे भारत के संसद की भूमिका भी निभानी पडी। 

जब संविधान सभा संविधान निर्माण का कार्य करती थी तो डॉ राजेंद्र प्रसाद सभा की अध्यक्षता करते थे, किन्तु जब संविधान सभा संसद का कार्य करती थी तो सभा की अध्यक्षता गणेश  वासुदेव मावलंकर द्वारा की जाती थी। 

बी एन राव 

सभी समितियों से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर संविधान सभा के विधि सलाहकार बेनेगल नरसिम्हा राव या बी एन राव ने भारतीय संविधान का मूल प्रारूप तैयार किया। संविधान के मूल प्रारूप में कुल 243 अनुच्छेद तथा 13 अनूसूचियां थी। 

इस कार्य में उत्कृष्टता लाने हेतू आपने अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों की यात्रा की और कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया। आप भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश थे। 




वी टी कृष्णमाचारी 

वी टी कृष्णमाचारी (सर वंगल थिरुवेंकटचारी कृष्णमाचारी) सिविल सेवक और प्रशासक थे। उन्होंने 1927 से 1944 तक बड़ौदा के दीवान, 1946 से 1949 तक जयपुर राज्य के प्रधान मंत्री और 1961 से 1964 तक राज्य सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। जयपुर के भारतीय संघ में शामिल होने के बाद, कृष्णमाचारी 28 अप्रैल को 1948 जयपुर के प्रतिनिधि के रूप में संविधान सभा में शामिल हुए। 

जुलाई 1947 में, भारत के विभाजन के निर्णय के बाद, संविधान सभा ने अपने नियमों को संशोधित करके दो उपाध्यक्ष बनाने और उनमें से एक रियासतों से होने का प्राविधान किया। 

जब 16 जुलाई 1948 को विधानसभा ने इन उपाध्यक्षों का चुनाव किया, तो केवल दो नामांकन थे, इसलिए कृष्णमाचारी (जयपुर) को डॉ. हरेंद्र कुमार मुखर्जी (पश्चिम बंगाल) के साथ निर्विरोध चुना गया। 

टी टी कृष्णमाचारी 

टी टी कृष्णमाचारी (तिरुवेलोर थट्टई कृष्णमाचारी) प्रारूप समिति के सदस्य थे। उन्हें 1956 से 1958 तक और 1964 से 1966 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया गया था। कृष्णमाचारी को हरिदास मुंद्रा कांड में शामिल होने के कारण 18 फरवरी 1958 को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। 




प्रारूप समिति

प्रारूप समिति संविधान सभा की महत्वपूर्ण समितियों में से एक थी। प्रारूप समिति ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया। संविधान सभा के लगभग सभी सदस्यों ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका प्रारूप समिति द्वारा अदा की गई। संविधान निर्माण में प्रारूप समिति की वही भूमिका थी जो एक भव्य इमारत के निर्माण में एक कुशल इंजीनियर की होती है। संविधान सभा द्वारा प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को किया गया। महान विद्वान और समाज सुधारक डॉ. भीमराव राम जी अम्बेडकर को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 

डा. भीमराव अंबेडकर की सहायता के लिए प्रारूप समिति में 6 अन्य सदस्यों एन. गोपालास्वामी अय्यंगर, कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी, (के एम मुंशी), अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर (एम के अय्यर), बी एल मितर, मो. सादुल्ला एवं डी पी खेतान की नियुक्ति की गई।

बी एल मितर का स्वास्थ खराब जाने के कारण उनकी जगह माधव राव को प्रारूप समिति में शामिल किया गया। डी पी खेतान की मृत्यू के बाद 1948 में टी टी कृष्णामाचारी को प्रारूप समिति का सदस्य बनाया गया।  

संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार सर बेनेगल नरसिंह राव थे (बी. एन. राव)। जिन्हें 1950 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहला भारतीय जज नियुक्त किया गया। 4 नवंबर 1947 को प्रारूप समिति द्वारा भारतीय संविधान का एक प्रारूप तैयार किया गया। इस पर बहस कराई गई। 

संविधान सभा की विभिन्न समितियां

22 जनवरी, 1947 ई. को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद सुचारू रूप से कार्य करने के लिये संविधान सभा ने इसके कार्यों को विभिन्न समितियों में विभाजित कर दिया। 

संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण

इस प्रकार 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान अधिनियमित कर लिया। इस दिन संविधान सभा के 284 सदस्यों ने संविधान को अपने हस्ताक्षर के द्वारा अंगीकृत किया। 26 नवंबर 1949 की संविधान सभा की इस ऐतिहासिक में 285 सदस्य मौजूद थे। निजी कारणों या सेहत आदि की वजह से 14 सदस्य बैठक में शामिल नहीं हो सके। इन उपस्थित सदस्यों में से भी एक सदस्य जिनका नाम हसरत मोहानी था ने अंगीकरण प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किया। 

संविधान के कुछ अनुच्छेद 26 नवम्बर से लागू

संविधान के अनुच्छेेद 5, 6, 7, 8, 9, (नागरिकता से संबन्धित) 60 (राष्ट्रपति की शपथ) 324 (निर्वाचन आयोग) 366 (परिभाषायें), 367 (विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों से सम्बन्धित प्राविधान), 372 (यह अनुच्छेद भारतीय संविधान के लागू होने से पूर्व बनाए गए किसी कानून की न्यायिक समीक्षा से संबंधित प्रावधान करता है), 380 (निरसित), 388 (निरसित), 391 (निरसित), 392 (कठिनाइयों को दूर करने की राष्ट्रपति की शक्ति) तथा 393 (भारतीय संविधान का संक्षिप्त नाम ‘भारत का संविधान‘) 26 नवम्बर 1949 से ही लागू हो गये।





हसरत मोहानी 

1 जनवरी 1875 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पैदा हुए मौलाना हसरत मोहानी. देश के एक प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा उर्दू के लोकप्रिय शायर थे। 1904 में आपने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। 

आपने क्रातिकारियो में लोकप्रिय इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया। मोहानी को संविधान के कई प्रावधानों पर आपत्ति थी। 

उनका कहना था कि इस संविधान से देश में सच्चा लोकतंत्र नहीं आ पाएगा। संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 का विरोध करने वालों में मौलाना हसरत मोहानी भी थे। 

मौलाना हसरत मोहानी बाल गंगाधर तिलक के नजदीकी थे। वह श्रीकृष्ण के भक्त भी थे. उन्होंने भगवान कृष्ण पर कई शायरी की है।

संविधान निर्माण में लगा समय

संविधान निर्माण की प्रक्रिया में 9 दिसम्बर 1946 से 26 नवम्बर 1949 तक कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे। इस बीच सभा के कुल 11 सत्र 165 दिन बुलाये गये, जिसमें से 114 दिन केवल प्रारूप पर चर्चा की गई। 

संविधान सभा का अंतिम सत्र -24 जनवरी 1950

संविधान सभा का एक दिवसीय 12 वां और अंतिम सत्र तथा अंतिम बैैठक 24 जनवरी 1950 को आयोजित किया गया। इस दिन मूल प्रति पर हस्ताक्षर करने वाले सभी 284 सदस्य संविधान सभा में उपस्थित थे। 

इसी दिन संविधान सभा द्वारा रवींद्रनाथ टैगोर की मूल रूप से बांग्ला में रचित जन-गण-मन गीत के हिंदी संस्करण को भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया। 

संविधान के सत्र

संविधान का निर्माण 11 सत्रों तथा 165 बैठकों में यानी 26 नवंबर 1949 तक पूर्ण हो गया।