पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम 1996 | Fifth Schedule & PESA Act 1996
🔹 पांचवीं अनुसूची का परिचय
भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची उन प्रावधानों से संबंधित है जो अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए बनाए गए हैं।
🔹 अनुच्छेद 244(1)
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पांचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में लागू होते हैं।
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इन चारों राज्यों के लिए छठी अनुसूची लागू होती है।
🔹 पांचवीं अनुसूची से संबंधित प्रमुख राज्य
वर्तमान में 10 राज्यों में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र चिन्हित हैं —
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश।
🔹 मध्य प्रदेश में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत जिले
झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, खंडवा, बैतूल, सिवनी, मंडला, बालाघाट, मुरैना और रतलाम (सैलाना तहसील)।
🔹 अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा
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किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है।
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राष्ट्रपति, संबंधित राज्यपाल से परामर्श के बाद क्षेत्रफल बढ़ा या घटा सकता है।
🔹 राज्य व केंद्र की कार्यकारी शक्तियाँ
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राज्य की कार्यकारी शक्ति अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित है।
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केंद्र सरकार राज्य को इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में निर्देश दे सकती है।
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राज्यपाल को प्रत्येक वर्ष अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी होती है।
🔹 जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC)
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प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है।
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परिषद में 20 सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन-चौथाई (15 सदस्य) राज्य विधानसभा के अनुसूचित जनजाति वर्ग से होने चाहिए।
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इसका उद्देश्य जनजातीय कल्याण से संबंधित नीतियों पर राज्यपाल को सलाह देना है।
🔹 राज्यपाल की शक्तियाँ
राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं –
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शांति एवं सुशासन के लिए नियम बनाना।
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भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाना।
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अनुसूचित जनजातियों के लिए भूमि आवंटन के नियम बनाना।
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साहूकारी व्यवसाय को नियंत्रित करना।
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किसी राज्य या संसद के कानून को अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू न करने या संशोधित रूप में लागू करने का अधिकार।
🟢 पेसा अधिनियम 1996 (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act, 1996)
🔹 पृष्ठभूमि
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संविधान के 73वें संशोधन (1992) द्वारा पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई (24 अप्रैल 1994)।
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लेकिन अनुच्छेद 243(एम) के अनुसार, पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं थी।
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भूरिया समिति (1995) की सिफारिशों पर पेसा अधिनियम, 1996 अस्तित्व में आया।
🔹 मुख्य उद्देश्य
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अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय स्वशासन को मान्यता देना।
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ग्राम सभाओं को भूमि, जल, वन और खनिज संसाधनों पर अधिकार प्रदान करना।
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जनजातीय परंपरा और संस्कृति के संरक्षण हेतु स्वायत्त शासन प्रणाली सुनिश्चित करना।
🔹 मध्य प्रदेश में पेसा नियम 2022
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15 नवम्बर 2022 (जनजातीय गौरव दिवस) पर मध्य प्रदेश ने अपने पेसा नियमों को अधिसूचित किया।
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शहडोल में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेसा नियमावली की प्रति भेंट की।
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इसका उद्देश्य जनजातीय समाज को ग्राम स्तर पर अधिकार संपन्न बनाना है।
🔹 पेसा अधिनियम की मूल भावना
“ग्राम सभा सर्वोपरि है” —
ग्राम सभा ही स्थानीय संसाधनों, सामाजिक न्याय, और पारंपरिक निर्णय प्रणाली की सर्वोच्च इकाई मानी गई है।
🔹 सारांश
पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम भारत के जनजातीय समाज के लिए संवैधानिक सुरक्षा कवच हैं।
इनका उद्देश्य जनजातियों की भूमि, संस्कृति और आत्मनिर्भरता की रक्षा करते हुए उन्हें शासन में भागीदार बनाना है।



























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