समाजवाद का अर्थ
समाजवाद से तात्पर्य एक ऐसी
विचारधारा से है जो एक स्वस्थ समाज के निर्माण को प्राथमिकता देती है।
स्वस्थ समाज से तात्पर्य एक ऐसे
समाज से है जिसमें बड़े पैमाने पर सामाजिक - आर्थिक पर असमानता विधमान न हो तथा
लोगों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान जीवन अवसर प्राप्त हों। प्रत्येक
व्यक्ति को सम्मान युक्त जीवन जीने का अधिकार हो. तात्पर्य यह है कि समाज में कोई मूलभूत
अधिकारों एवं सुविधाओं से वंचित न हो.
समाजवाद और साम्यवाद में भेद
समाजवाद समाज में व्याप्त असमानताओं
को समाप्त करने का पक्षधर होता है। इसीलिए कई बार इसे साम्यवाद भी कहा जाता है।
हलांकि साम्यवाद की तुलना में समाजवाद काफी व्यापक अवधारणा है। साम्यवाद केवल
सामाजिक आर्थिक असमानता को कायम करने का पक्षधर होता है, जबकि समाजवाद समानता के साथ साथ सामाजिक न्याय, समाज कल्याण तथा समाज को शक्तिशाली बनाने का
पक्षधर होता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक आधार पर ग्रीक विद्वान
प्लैटो को समाजवाद का जनक माना जाता है। हालांकि प्लैटो समाजवाद का समर्थन राज्य
को ताकतवर बनाने के लिए करता है।
कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक कहते हैं। समाजवाद से जुड़ी मार्क्स की व्याख्या को मार्क्सवाद कहा जाता है मार्क्स पूंजीवाद के विरोधी थे। उन्होने अपनी पुस्तक दास कैपिटल में पूंजी को समाज की सबसे बड़ी बुराई माना। उन्होने पूंजीवाद के खिलाफ सर्वहारा वर्ग की क्रांति एवं वर्ग संघर्ष का समर्थन किया। समाजवाद समय और स्थान के सापेक्ष रूप बदलता गया।
लेनिनवाद
रूस की क्रांति (1917) के नायक
ब्लादीमीर लेनिन ने जार निकोलस द्वितीय के निरंकुश राजतंत्र के खिलाफ समाजवाद को
हथियार बनाया और जनांदोलन के माध्यम से राजशाही को समाप्त करते हुए सोवियत गणराज्य
की स्थापना की.
माओवाद
मार्क्सवाद का चीनी संस्करण माओत्से
तुंग की देन है। आपके नेतृत्व में 1949 में चीनी क्रांति हुई और प्यूपल रिपब्लिक
ऑफ चाइना का गठन हुआ। माओ का मानना था कि एक हिंसक क्रांति के द्वारा ही समता परक
समाज की स्थापना की जा सकती है। उन्होने कहा कि सत्ता बन्दूक की नोक से निकलती है।
उनका साम्यवाद कृषक वर्ग को न्याय प्रदान करने के लिए एक पीपुल्स वार का समर्थक
था।
नक्सलवाद
माओवाद का भारतीय संस्करण नक्सलवाद
के नाम से जाता है। इसके संस्थापक चारू मजूमदार व कान्हू सान्याल थे। 70 के दशक
में आरम्भ हुआ नक्सलवाद सशस्त्र क्रांति के द्वारा सामाजिक आर्थिक असमानता लाने के
लिए प्रयत्नशील है।
भारत में साम्यवाद का प्रभाव
भारत में भी साम्यवाद का जन्म
लगभग उसी समय हुआ जब सोवियत संघ में लेनिन व स्टालिन का साम्यवाद अपने चरम पर था। श्रीपद
अमृत दांगे व मानवेन्द्र नाथ राय 26 दिसम्बर 1925 को भारत में कम्यूनिस्ट पार्टी
ऑफ इंडिया की स्थापना की।
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन पर साम्यवाद का प्रभाव
भारत के क्रांतिकारी दलों जैसे युगान्तर, अनुशीलन समिति तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन
सोशलिस्ट एसोशिएशन पर भी साम्यवादी क्रांति का गहरा प्रभाव था। महान क्रांतिकारी
राम प्रसाद बिस्मिल ने बोल्सेविक की करतूत नामक उपन्यास में साम्यवादी क्रांति का
समर्थन किया। सरदार भगत सिंह अपनी फांसी के दिन जर्मन मार्क्स वादी विचारक क्लैरा जेटकिन
की पुस्तक रेमिनिसेंसेज ऑफ लेनिन (लेनिन की स्मृतियां) पढ़ रहे थें।
राम मनोहर लोहिया का नवसमाजवाद (लोहियावाद)
राम मनोहर लोहिया ने साम्यवाद और
पूंजीवाद के स्थान पर नवसमाजवाद की अवधारणा दी। गांधी जी के प्रति अपार श्रद्धा का
भाव रखने तथा अनेक मुद्दों पर विचारों की समानता होने के बावजूद लोहिया ने गांधी
को पूर्ण नहीं माना।
|
गांधी और मार्क्स के प्रति अपार श्रद्धा का भाव रखने के बावजूद
लोहिया गांधी और मार्क्स दोनों को पूर्ण नहीं मानते थे. |
वे साम्यवाद और पूंजीवाद के मध्य
सामंजस्य स्थापित करने पर जोर देते हैं। उनका मानना था कि साम्यवाद दुनिया की आधी
आबादी को भोजन देने में असमर्थ है और पूंजीवाद से एक स्वस्थ समाज की स्थापना सम्भव
नहीं है।
|
लोहिया
का मानना था कि एक स्वस्थ समाज पूंजीवाद और साम्यवाद के समन्वय से ही संभव है. |
नेहरु का फेबियन समाजवाद
जवाहर लाल नेहरू भी एक समाजवादी
नेता थे, उनका समाजवाद फेबियन समाजवाद के
नाम से जाना जाता है। फेबियन समाजवाद क्रांति की जगह लोकतांत्रिक रूपान्तरण में
यकीन रखता है। उनका मानना था कि एक लोकतांत्रिक सरकार सामाजिक समता की स्थापना तथा
सामाजिक न्याय का सबसे सशक्त वाहक होती
है।
उन्होने जमीनदारी उन्मूलन, कृषि योग्य भूमि के पुनर्वितरण एवं शिक्षा एवं
रोजगार में समाज के कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण के लिए संविधान में अनेक संशोधन किये।
इंदिरा गांधी का समाजवाद
श्रीमति इंदिरा गांधी ने अपने
पूरे शासन काल में समाजवादी विचारधारा को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। उन्होने
गरीबी हटाओ का नारा दिया। गरीबी उन्मूलन हेतू बीस सूत्री कार्यक्रम चलाया, प्रीवी पर्स की समाप्ति की, बैंकों एवं उधोगों का सार्वजनीकरण किया।
जय प्रकाश नारायण समाजवाद
जय प्रकाश नारायण ने अमेरिका में
समाजशास्त्र की पढ़ाई के दौरान आप कार्ल मार्क्स से अत्यंत प्रभावित हुए। 1922 में
भारत आकर वे महात्मा गांधी से जुड़ गये। वे जवाहर लाल नेहरू के अच्छे दोस्त थे। वे
विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन से जुडे। वे दलविहीन (पार्टीलेस) राजनीतिक व्यवस्था
के समर्थक थे। वे चाहते थे कि जनता द्वारा ग्राम स्तर पर प्रतिनिधियों का चुनाव
किया जाय फिर ग्राम स्तर के प्रतिनिधि राज्य स्तर के प्रतिनिधियों का चुनाव करें
और राज्य स्तर के प्रतिनिधि केन्द्र स्तर पर प्रतिनिधियों का चुनाव करें। इसलिए
आजादी के बाद आपने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।
जात-पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को मोड़ दो
लेकिन जब 1971 से पूर्ण सत्ता में आने श्रीमति इंदिरा गांधी का तानाशाही रवैया लोकतंत्र को तार तार करने लगा तो उन्होंने 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से संम्पूर्ण क्रांति का आहवान किया। उन्होने नारा दिया जात-पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को मोड़ दो।
सम्पूर्ण क्रांति का नारा
इसे सम्पूर्ण क्रांति इसलिए कहा
गया क्योकि, यह मात्र सत्ता परिवर्तन से
सम्बन्धित क्रांति नहीं थी। सम्पूर्ण क्रांति में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक क्रांति सहित कुल सात क्रांतियां
शामिल थी।
सम्पूर्ण क्रांति का उद्देश्य
इंदिरा शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता को उखाड़ फेकना था। समकालीन
राजनीतिक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे क्षितिज पर वर्ष 1942
दिखाई दे रहा है।
25 जून 1975 यानी इमरजेंसी से
सिर्फ एक दिन पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली की जिसमें तमाम प्रतिबन्धों
के बावजूद करीब 7 लाख लोग इकठ्ठा हुए हर तरफ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यही
कविता गूंज रही थी, कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती
है।
हलांकि अगले ही दिन देश में
राष्ट्रीय आपात लगा कर इस आन्दोलन को कुचल दिया गया। इमरजेंसी खत्म होने के बाद
जनता पार्टी सरकार सत्ता में आयी।
लेखक : सी एम मिश्रा



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