जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes
🔹 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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1931 की जनगणना से पहले जनजातियों को “वनवासी”, “आदिवासी” या “गिरीजन” कहा जाता था।
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1931 की जनगणना के कमिश्नर जे.एच. हट्टन ने इन्हें पहली बार “आदिम जाति” के रूप में वर्गीकृत किया।
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बेरियर एल्विन ने इन्हें “भारत का मूल स्वामी” बताया और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण हेतु “राष्ट्रीय उपवन” की अवधारणा दी।
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जी.एस. घुर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India में इन्हें “पिछड़े हिन्दू” कहा।
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ठक्कर बापा ने अपनी पुस्तक Tribes of India (1950) में इन्हें “गिरीजन” कहा।
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ब्रिटिश शासन में इन्हें “एनिमिस्ट” कहा जाता था, पर 1931 में “जनजाति” शब्द का प्रयोग किया गया।
🔹 संविधानिक परिभाषा
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अनुच्छेद 366(25) – “अनुसूचित जनजाति” का अर्थ उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों से है जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो।
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अनुच्छेद 342 – राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श कर किसी जनजाति को अनुसूचित घोषित कर सकता है।
🔹 जनजातीय कल्याण हेतु प्रमुख संवैधानिक उपबंध
| अनुच्छेद | प्रावधान | उद्देश्य |
|---|---|---|
| 15(4), 15(5) | शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान हेतु विशेष प्रावधान एवं आरक्षण | शिक्षा में समान अवसर |
| 16(4), 16(4A) | रोजगार एवं पदोन्नति में आरक्षण | प्रशासनिक प्रतिनिधित्व |
| 23-24 | जबरन श्रम, बाल श्रम पर प्रतिबंध | शोषण से सुरक्षा |
| 29 | भाषा, लिपि एवं संस्कृति की रक्षा | सांस्कृतिक संरक्षण |
| 46 | अनुसूचित जाति-जनजाति के शैक्षिक-आर्थिक हितों का संवर्धन | सामाजिक न्याय |
| 164 | उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में “आदिवासी कल्याण मंत्री” | नीति-निर्माण में भागीदारी |
| 243D | पंचायतों में आरक्षण | स्थानीय स्वशासन में सहभागिता |
| 330-332 | लोकसभा व विधानसभा में आरक्षण | राजनीतिक प्रतिनिधित्व |
| 334 | आरक्षण अवधि का विस्तार (2030 तक) | निरंतर संरक्षण |
| 275 | केंद्र द्वारा राज्यों को विशेष अनुदान | जनजातीय क्षेत्र का विकास |
🔹 विशेष अधिनियम व नीतियाँ
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बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम, 1976
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अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकार अधिनियम), 2006
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पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम – PESA, 1996
