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Sunday, November 9, 2025

जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

 


जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

🔹 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1931 की जनगणना से पहले जनजातियों को “वनवासी”, “आदिवासी” या “गिरीजन” कहा जाता था।

  • 1931 की जनगणना के कमिश्नर जे.एच. हट्टन ने इन्हें पहली बार “आदिम जाति” के रूप में वर्गीकृत किया।

  • बेरियर एल्विन ने इन्हें “भारत का मूल स्वामी” बताया और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण हेतु “राष्ट्रीय उपवन” की अवधारणा दी।

  • जी.एस. घुर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India में इन्हें “पिछड़े हिन्दू” कहा।

  • ठक्कर बापा ने अपनी पुस्तक Tribes of India (1950) में इन्हें “गिरीजन” कहा।

  • ब्रिटिश शासन में इन्हें “एनिमिस्ट” कहा जाता था, पर 1931 में “जनजाति” शब्द का प्रयोग किया गया।


🔹 संविधानिक परिभाषा

  • अनुच्छेद 366(25) – “अनुसूचित जनजाति” का अर्थ उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों से है जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो।

  • अनुच्छेद 342 – राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श कर किसी जनजाति को अनुसूचित घोषित कर सकता है।


🔹 जनजातीय कल्याण हेतु प्रमुख संवैधानिक उपबंध

अनुच्छेदप्रावधानउद्देश्य
15(4), 15(5)शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान हेतु विशेष प्रावधान एवं आरक्षणशिक्षा में समान अवसर
16(4), 16(4A)रोजगार एवं पदोन्नति में आरक्षणप्रशासनिक प्रतिनिधित्व
23-24जबरन श्रम, बाल श्रम पर प्रतिबंधशोषण से सुरक्षा
29भाषा, लिपि एवं संस्कृति की रक्षासांस्कृतिक संरक्षण
46अनुसूचित जाति-जनजाति के शैक्षिक-आर्थिक हितों का संवर्धनसामाजिक न्याय
164उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में “आदिवासी कल्याण मंत्री”नीति-निर्माण में भागीदारी
243Dपंचायतों में आरक्षणस्थानीय स्वशासन में सहभागिता
330-332लोकसभा व विधानसभा में आरक्षणराजनीतिक प्रतिनिधित्व
334आरक्षण अवधि का विस्तार (2030 तक)निरंतर संरक्षण
275केंद्र द्वारा राज्यों को विशेष अनुदानजनजातीय क्षेत्र का विकास

🔹 विशेष अधिनियम व नीतियाँ

  • बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम, 1976

  • अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकार अधिनियम), 2006

  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम – PESA, 1996