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Sunday, December 21, 2025

मध्य प्रदेश में उद्योग और आर्थिक विकास उत्प्रेरक (Industry and economic development catalysts in Madhya Pradesh)

 

मध्य प्रदेश में उद्योग और आर्थिक विकास उत्प्रेरक (Industry and economic development catalysts in Madhya Pradesh)

   मध्य प्रदेश में उद्योगों की उत्पादकता और औद्योगिकीकरण में पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि राज्य में किए गए बड़े निवेशों, उद्योगों की बढ़ी हुई क्षमताओं और सरकारी नीतियों के कारण संभव हो पाई है।

1.    निवेशों और उत्पादकता में वृद्धि

   पिछले पंद्रह वर्षों में स्थायी पूंजी निवेश की वार्षिक औसत वृद्धि दर 21.6 प्रतिशत रही है, जबकि शुद्ध मूल्य वर्धन की वार्षिक औसत वृद्धि दर 12.2 प्रतिशत रही है। इससे राज्य के उद्योगों की उत्पादकता और विकास में सुधार हुआ है।

2.    औद्योगिकीकरण में वृद्धि

   उद्योगों की बढ़ी हुई क्षमताओं के परिणामस्वरूप, वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2021-22 में शुद्ध मूल्य वर्धन 27.3 प्रतिशत की उच्चतम औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा, जो राज्य के तेजी से औद्योगिकीकरण का संकेत है।

3.    एमएसएमई का विस्तार

   राज्य में 4.57 लाख पंजीकृत एमएसएमई इकाइयां हैं, जिनमें 97.7 प्रतिशत सूक्ष्म, 2.12 प्रतिशत लघु, और 0.15 प्रतिशत मध्यम इकाइयां हैं। 2018-2023 के बीच, कंपनी अधिनियम 2013 के तहत राज्य में कंपनियों का पंजीकरण 11.1 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि दर से बढ़ा, जो राष्ट्रीय औसत 8.8 प्रतिशत से अधिक है।

4.    स्टार्टअप्स में वृद्धि

   मध्य प्रदेश ने अपनी स्टार्टअप नीति 2022 के क्रियान्वयन के बाद से कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि की है। स्टार्टअप नीति 2022 के तहत, 2023 तक राज्य में स्टार्टअप्स में 126 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स में भी 140 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो महिलाओं के नेतृत्व में व्यवसायों को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों का परिणाम है।

5.    निर्यात में वृद्धि

   भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में मध्य प्रदेश का योगदान वित्त वर्ष 2023-24 में 1.8 प्रतिशत रहा। राज्य से निर्यात की प्रमुख वस्तु फार्मास्युटिकल उत्पाद है, जिसका मूल्य 13,158 करोड़ रुपये है।

6.    निर्यात संवर्धन की पहलें

   मध्य प्रदेश व्यापार संवर्धन परिषद (एमपीटीपीसी) और निर्यात प्रकोष्ठ ने 40 से अधिक कार्यक्रमों और पहलों में भाग लिया। निर्यात हब पहल के तहत, जिला-केंद्रित निर्यात वृद्धि को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे आत्मनिर्भरता और आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित की जा रही है।

7.    निर्यात में इंदौर का योगदान

   वित्त वर्ष 2023-24 में इंदौर 20,256 करोड़ रुपये के निर्यात के साथ सबसे अधिक निर्यात करने वाला जिला बन गया है। इस पहल का उद्देश्य एमएसएमई, किसानों, और छोटे उद्यमों को विदेशी बाजारों में निर्यात के अवसरों से सशक्त बनाना है।

8.    निर्यात तैयारी सूचकांक

   मध्य प्रदेश के निर्यात तैयारी सूचकांक में पिछले वर्ष की तुलना में सुधार हुआ है। राज्य का कुल स्कोर 55.68 रहा और 2022 में यह समग्र रूप से 12वें स्थान पर और भूमि से घिरे राज्यों में 5वें स्थान पर था।

9.    लॉजिस्टिक्स रिपोर्ट में स्थिति

   लॉजिस्टिक्स ईज एक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (LEADS) 2022 रिपोर्ट में मध्य प्रदेश ने फास्ट मूवर श्रेणी में स्थान प्राप्त किया है, जो राज्य की लॉजिस्टिक्स दक्षता को दर्शाता है।

10.  नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि

   2012 में 438.01 मेगावाट की स्थापित क्षमता को दिसंबर 2023 में बढ़ाकर 5,462.09 मेगावाट कर दिया गया है, जो 1,147.02 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। राज्य का योगदान देश के कुल सौर उत्पादन में 8.2 प्रतिशत है, जो इसे चौथे स्थान पर रखता है।

   रीवा मेगा सौर परियोजना के माध्यम से 750 मेगावाट का उत्पादन किया जाता है, जिसमें से एक भाग दिल्ली मेट्रो को भी दिया जाता है।

11.  जल संरक्षण और भूजल सुधार

   बुंदेलखंड क्षेत्र के 6 जिलों के 9 विकासखंडों में जल संरक्षण और भूजल सुधार के लिए अटल भूजल योजना लागू की गई है। राज्य का 2027 तक 53 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य सिंचित क्षेत्र विकसित करने का लक्ष्य है।

   महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना पर काम चल रहा है, जिससे 103 मेगावाट जल विद्युत उत्पन्न होगी और लगभग 41 लाख आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने के अलावा बुंदेलखंड (4.51 लाख हेक्टेयर) और बेतवा बेसिन (2.06 लाख हेक्टेयर) में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध होंगी।

Saturday, December 20, 2025

गैर-निष्पादित आस्तियां (Non-Performing Assets - NPA)

 


गैर-निष्पादित आस्तियां (Non-Performing Assets - NPA)

   गैर-निष्पादित आस्तियां वह ऋण या एडवांस होते हैं जो बैंक या वित्तीय संस्थान को समय पर चुकता नहीं किए जाते। सरल शब्दों में, जब कोई बैंक से ऋण लेता है और उसे समय पर ब्याज या मूलधन के रूप में वापस नहीं करता, तो वह ऋण बैंक के लिए गैर-निष्पादित आस्ति बन जाता है।

   गैर-निष्पादित आस्तियों की विशेषताएँ (Characteristics of non-performing assets)

1.    किसी भी ऋण को एनपीए तभी माना जाता है जब उधारकर्ता 90 दिनों तक ब्याज या मूलधन की किश्त का भुगतान नहीं करता।

2.    एनपीए से बैंकों की आय प्रभावित होती है, क्योंकि बैंक उस पर ब्याज नहीं कमा सकते हैं और इससे उनकी पूंजी और लाभप्रदता में कमी आती है।

3.    अधिक एनपीए बैंकों की बैलेंस शीट को कमजोर करता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति पर असर पड़ता है।

   एनपीए का प्रभाव

1.    एनपीए के बढ़ने से बैंकों की आय पर असर पड़ता है क्योंकि वे इस पर ब्याज नहीं कमा पाते हैं।

2.    अधिक एनपीए से बैंकों की उधार क्षमता घटती है, जिससे आर्थिक विकास में कमी आ सकती है।

3.    बैंक जिनकी एनपीए दर अधिक होती है, उन पर निवेशकों का विश्वास कम हो जाता है।

   एनपीए को नियंत्रित करने के उपाय

1.    बैंकों को ऋण देने की प्रक्रिया में सख्ती बरतनी चाहिए ताकि केवल पात्र ग्राहकों को ही ऋण दिया जा सके।

2.    बैंकों को उन तरीकों पर ध्यान देना चाहिए जो उधारकर्ताओं से धन की वसूली में मदद कर सकते हैं, जैसे कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (प्ठब्)।

3.    एनपीए की समस्या को समय पर पहचानकर उसका हल निकाला जा सकता है, जैसे नियमित पुनर्गठन और निरीक्षण।

   सरफरेसी अधिनियम 2002- (SARFAESI Act 2002 2002)

(The Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002)

   सरफेसी अधिनियम बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को ऋण वसूली के लिए वाणिज्यिक या आवासीय संपत्तियों की नीलामी करने की अनुमति देता है, जब कोई उधारकर्ता ऋण राशि चुकाने में विफल रहता है।

   इसके अलावा,सरफेसी अधिनियम, 2002 बैंकों को वसूली विधियों और पुनर्निर्माण के माध्यम से अपनी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को कम करने में सक्षम बनाता है।

   सरफेसी अधिनियम में प्रावधान है कि बैंक कृषि भूमि को छोड़कर किसी उधारकर्ता की संपत्ति को अदालत में जाए बिना जब्त कर सकते हैं। असुरक्षित संपत्तियों के मामले में, बैंक को अदालत में जाना होगा और डिफॉल्टरों के खिलाफ सिविल मामला दायर करना होगा।

   गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की श्रेणियाँ

   90 दिनों से अधिक समय तक गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की अवधि के आधार पर, उन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

   घटिया परिसंपत्ति- एक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति जो 12 महीने से कम या उसके बराबर समय से बकाया है, वह घटिया परिसंपत्ति है।

   संदिग्ध परिसंपत्ति- यह एक ऐसी परिसंपत्ति है जो 12 महीने से अधिक समय तक एनपीए बनी हुई है।

   घाटे वाली परिसंपत्ति- एक परिसंपत्ति जो 3 साल से अधिक समय तक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति बनी रहती है, वह घाटे वाली परिसंपत्ति होती है। ऐसा तब होता है जब बैंक को कुल नुकसान का सामना करना पड़ता है क्योंकि वह परिसंपत्ति की वसूली नहीं कर पाता है।

   राज्य में एनपीए की स्थिति

   प्रदेश में निजी बैंकों, लघु वित्त बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियों में क्रमशः 47 प्रतिशत, 19 प्रतिशत, और 6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

   यह बैंकिंग क्षेत्र की संपत्ति गुणवत्ता में सुधार को दर्शाता है, जो कि वित्तीय स्थिरता के लिए सकारात्मक संकेत है।

   सरकार द्वारा बैंकिंग सेवाओं के विस्तार और ऋण की पहुंच को बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों से मध्य प्रदेश में आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता को बल मिल रहा है। एन पी ए में आई कमी से बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता और सुधार के संकेत मिलते हैं, जिससे भविष्य में राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सहायता मिलेगी।

 

 

 

प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Prime Minister's Jan Dhan Yojana)

 


प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Prime Minister's Jan Dhan Yojana)

   प्रधानमंत्री जन-धन योजना भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण वित्तीय समावेशन योजना है, जिसे 28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य देश के सभी लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर उन्हें बैंक खाते की सुविधा प्रदान करना और वित्तीय सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़ाना है।

   प्रधानमंत्री जन-धन योजना के मुख्य उद्देश्य

1. गरीब और ग्रामीण आबादी के बीच बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करना।

2.  प्रत्येक परिवार के पास बैंक खाता हो, जिससे वे सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से अपनी आर्थिक गतिविधियाँ कर सकें।

3.  सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे उनके जन-धन खातों में पहुंचाना, जिससे भ्रष्टाचार में कमी हो और पारदर्शिता बढ़े।

4.  आम लोगों में बचत की आदत को प्रोत्साहित करना और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना।

   योजना की विशेषताएँ

1.  जन-धन योजना के तहत बैंक खाते में न्यूनतम शेष की आवश्यकता नहीं होती है।

2.  सभी खाताधारकों को रुपे डेबिट कार्ड प्रदान किया जाता है, जिससे वे एटीएम से पैसे निकाल सकते हैं और खरीदारी कर सकते हैं।

3.  इस योजना के तहत खाताधारक को 2 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर मिलता है।

4.  इस योजना में खाताधारकों को 10,000 रुपये तक की ओवरड्राफ्ट सुविधा भी दी जाती है। यह सुविधा खाताधारक के खाते में न्यूनतम 6 महीने तक सक्रियता के बाद उपलब्ध होती है।

5.  खाताधारकों को मोबाइल बैंकिंग के जरिए खाते की जानकारी प्राप्त करने और लेन-देन करने की सुविधा मिलती है।

6.  खाताधारकों को बीमा और पेंशन सेवाओं से जोड़ा गया है, जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मिले।

   प्रधानमंत्री जन-धन योजना भारत में एक बड़ी सफलता साबित हुई है। मार्च 2023 तक, इस योजना के तहत 47 करोड़ से अधिक जन-धन खाते खोले गए, जिनमें महिलाओं, ग्रामीण और वंचित वर्गों का बड़ा हिस्सा शामिल है। इस योजना ने भारत में वित्तीय समावेशन को नया आयाम दिया है और गरीब वर्ग को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

   मध्य प्रदेश में इस योजना के तहत 4.29 करोड़ से अधिक लोगों को बैंकिंग सुविधाओं से जोड़ा गया है, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है।

वित्तीय स्थिति और राजकोषीय प्रदर्शन (Financial position and fiscal performance)

 


वित्तीय स्थिति और राजकोषीय प्रदर्शन (Financial position and fiscal performance)

   किसी सरकार की वित्तीय स्थिति को दर्शाने के लिए राजकोषीय घाटा, राजस्व अधिशेष तथा प्राथमिक घाटा जैसी अवधारणाओं का उपयोग किया जाता है।

   राजकोषीय घाटा (Fiscal deficit)

   राजकोषीय घाटा सरकार की आय और व्यय का अंतर है। जब सरकार अपने खर्चों के लिए जरूरी राशि आय से अधिक खर्च करती है, तो इस अंतर को वह विभिन्न स्रोतों से उधार लेकर पूरा करती है।

   राजकोषीय घाटे की गणना (Calculation of the fiscal deficit)

   राजकोषीय घाटा = कुल व्यय - कुल आय (कर और गैर-कर राजस्व, ब्याज रहित)

   उदाहरण के लिए, यदि सरकार का कुल खर्च 100,000 करोड़ रुपये है और उसकी कुल आय 80,000 करोड़ रुपये है, तो राजकोषीय घाटा = 100,000 - 80,000 = 20,000 करोड़ रुपये होगा।

   2024-25 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

   2024-25 के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसडीपी के 3.5 प्रतिशत तक राजकोषीय घाटे की अनुमति दी है। इसमें अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत बिजली क्षेत्र के कुछ सुधार करने पर उपलब्ध है।

   संशोधित अनुमान के अनुसार 2023-24 में राज्य का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह 4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के बजट अनुमान से कम है। 2026-27 तक राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है।

राजकोषीय घाटा

वर्ष

जीएसडीपी का

2024-25

4.1 प्रतिशत

2023-24

4 प्रतिशत का लक्ष्य

2023-24

3.6 प्रतिशत अनुमान

 

   राजस्व अधिशेष (Revenue surplus)

   राजस्व अधिशेष उस स्थिति को कहते हैं जब सरकार की कुल राजस्व आय उसकी कुल राजस्व व्यय से अधिक होती है।

   अर्थात- राजस्व अधिशेष = कुल राजस्व आय - कुल राजस्व व्यय

   राजस्व आय और राजस्व व्यय का अर्थ (Meaning of revenue income and revenue expenditure)

   राजस्व आय- इसमें सरकार की वह आय शामिल होती है, जो वह करों (जैसे आयकर, वस्तु एवं सेवा कर, उत्पाद शुल्क) और गैर-कर स्रोतों (जैसे लाभांश, ब्याज) से प्राप्त करती है। इस आय का उपयोग आमतौर पर सरकार की दिन-प्रतिदिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है।

   राजस्व व्यय- यह वह खर्च होता है जो सरकार के नियमित और प्रशासनिक कार्यों पर होता है, जैसे वेतन, पेंशन, सब्सिडी, और अन्य प्रशासनिक खर्च। यह व्यय कोई स्थायी संपत्ति या बुनियादी ढाँचा नहीं बनाता।

   उदाहरण

   मान लीजिए, एक राज्य की कुल राजस्व आय 50,000 करोड़ रुपये है और उसका कुल राजस्व व्यय 45,000 करोड़ रुपये है।

   राजस्व अधिशेष = 50,000 - 45,000 = 5,000 करोड़ रुपये

   इस प्रकार, इस राज्य को 5,000 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष प्राप्त हो रहा है, जो एक सकारात्मक वित्तीय स्थिति का संकेत है।

   बजट में 2024-25 में 1,700 करोड़ रुपए (या जीएसडीपी का 0.1 प्रतिशत) के राजस्व अधिशेष का अनुमान है।

   प्राथमिक घाटा (Primary deficit)

   प्राथमिक घाटा सरकार के कुल राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान को घटाने के बाद बची हुई राशि को कहा जाता है।

   प्राथमिक घाटा यह बताता है कि सरकार को अपने वर्तमान खर्चों को पूरा करने के लिए कितना अतिरिक्त उधार लेना पड़ा है, ब्याज के भुगतान को छोड़कर। यह एक महत्वपूर्ण संकेतक है, क्योंकि इससे पता चलता है कि वर्तमान वर्ष में सरकार का शुद्ध उधार कितना है, और यह सरकारी खर्चों की स्थिति को स्पष्ट करता है।

   प्राथमिक घाटे की गणना (Calculation of primary deficit)

   प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान

   उदाहरण

   मान लीजिए, किसी राज्य का राजकोषीय घाटा 60,000 करोड़ रुपये है और उस पर पिछले कर्ज के लिए ब्याज भुगतान 20,000 करोड़ रुपये है। तो, प्राथमिक घाटा = 60,000 - 20,000 = 40,000 करोड़ रुपये। इसका मतलब है कि सरकार को ब्याज चुकाने के बाद भी 40,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी की आवश्यकता है।

   2024-25 के अंत तक राज्य का बकाया देनदारियां जीएसडीपी का 32 प्रतिशत होने का अनुमान है जो 2023-24 के संशोधित अनुमान (जीएसडीपी का 28 प्रतिशत) से अधिक है। बकाया देनदारियां 2027-28 तक जीएसडीपी का 32 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

मध्य प्रदेश का राजकोषीय प्रदर्शन

मद

2022-23 वास्तविक

2023-24 संशोधित

2024-25 लक्ष्य

राजकोषीय घाटा

41,203

54,449

62,564

जीएसडीपी का प्रतिशत

3.11

3.6

4.11

राजस्व अधिशेष

4,091

621

1,700

जीएसडीपी का प्रतिशत

0.31

0.04

0.11

प्राथमिक घाटा

21,749

30,456

35,164

जीएसडीपी का प्रतिशत

1.6

2.0

2.3

 

   कर राजस्व में वृद्धि

   कर संग्रहण में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल रही है। 2024-25 के लिए कुल राजस्व प्राप्तियां 2,63,344 करोड़ रुपए होने का अनुमान है जो 2023-24 के संशोधित अनुमान से 14 प्रतिशत अधिक है।

   इसमें से 1,22,700 करोड़ रुपए (47 प्रतिशत) राज्य अपने संसाधनों से जुटाएगा और 1,40,645 करोड़ रुपए (53 प्रतिशत) केंद्र से प्राप्त होंगे।

   केंद्र से संसाधन केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी (राजस्व प्राप्तियों का 36 प्रतिशत) और अनुदान (राजस्व प्राप्तियों का 17 प्रतिशत) के रूप में होंगे।

   राज्य जीएसटी कर राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत (लगभग 39 प्रतिशत) है। राज्य जीएसटी राजस्व में 2023-24 के संशोधित अनुमान से 15 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है।