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Saturday, December 20, 2025

मध्य प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद (Madhya Pradesh's Gross Domestic Product)

 


मध्य प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद (Madhya Pradesh's Gross Domestic Product)

वर्तमान मूल्य पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)

वर्तमान मूल्य पर जीएसडीपी, वृद्धि अर्थव्यवस्था के उस विस्तार को दर्शाती है, जिसमें मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में हुई वृद्धि भी शामिल है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, मध्य प्रदेश का वर्तमान मूल्य पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद 13,63,327 करोड़ रुपये रहा। वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 12,46,471 करोड़ रुपये था।

इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2023-24 में वर्तमान मूल्य पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद में 9.37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

स्थिर (2011-12) मूल्यों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)

स्थिर मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद का आकलन विभिन्न वर्षो में उत्पादन के मूल्य में तुलनात्मक वृद्धि का पता लगाने के लिए किया जाता है।

वर्ष 2023-24 के लिए स्थिर कीमतों पर जीएसडीपी 6,60,363 करोड़ रुपये थी, जो पिछले वर्ष के 6,22,908 करोड़ रुपये से 6.01 प्रतिशत ज्यादा है।

वर्ष 2024-25 के लिए मध्य प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 8 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है।

विगत वर्ष की तुलना में मध्य प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में वृद्धि

वर्ष

जीएसडीपी (स्थिर कीमतों पर) वृद्धि

2023-24

6.6 प्रतिशत लक्ष्य

2023-24

6 प्रतिशत अनुमान

2024-25

8 प्रतिशत का लक्ष्य

 

प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि

किसी देश की आय को उसकी जनसंख्या से भाग देने पर आपको प्रति व्यक्ति आय प्राप्त होती है, जो किसी देश के जीवन स्तर का सूचक है। प्रति व्यक्ति आय जितनी अधिक होगी, जीवन स्तर उतना ही बेहतर होगा।

वर्तमान मूल्य पर, प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2011-12 में 38,497 रुपये थी जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 1,42,565 रुपये हो गयी है। इसमें लगभग चार गुना की वृद्धि हुई है।

स्थिर मूल्य पर, प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2011-12 में वर्ष 2011-12 में 38,497 रुपये से बढ़कर 2023-24 में 66,441 रुपये हो गयी।

प्रति व्यक्ति आय

वर्ष

2011-12

2023-24

वृद्धि

स्थिर मूल्य पर

38,497 रुपये

66,441 रुपये

लगभग 1.7 गुना

वर्तमान मूल्य पर

38,497 रुपये

1,42,565 रुपये

लगभग 3.7 गुना

 

Tuesday, November 18, 2025

रक्त का थक्का जमना (Hemostasis)

 


रक्त का थक्का जमना (Hemostasis): प्रक्रिया, कारण, विकार और जरूरी तथ्य

रक्त का थक्का जमना, जिसे हेमोस्टेसिस (Hemostasis) कहा जाता है, हमारे शरीर की एक अनोखी और जीवन-रक्षक प्रक्रिया है। जब किसी चोट या कट के कारण रक्त वाहिका क्षतिग्रस्त होती है, तो यह प्रक्रिया अत्यधिक रक्तस्राव को रोकते हुए शरीर की रक्षा करती है। यह एक नियंत्रित और क्रमबद्ध प्रणाली है जिसमें प्लेटलेट्स, थक्का कारक और फाइब्रिन जैसे तत्व शामिल होते हैं।

इस ब्लॉग में हम समझेंगे—रक्त का थक्का कैसे बनता है, इसमें कौनसे कारक शामिल होते हैं, थक्का संबंधित सामान्य विकार कौनसे हैं और कब चिकित्सा सहायता जरूरी है।

रक्त का थक्का जमना क्या है?

रक्त का थक्का जमना एक बहु-चरणीय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से शरीर किसी भी आंतरिक या बाहरी रक्तस्राव को रोकता है। यह केवल वहीं और तब होता है जहाँ इसकी आवश्यकता होती है, ताकि पूरे शरीर में थक्के बनने से गंभीर समस्याएं न हों।

हेमोस्टेसिस के तीन प्रमुख चरण

1. संवहनी ऐंठन (Vasoconstriction)

चोट लगने पर रक्त वाहिकाएं तुरंत सिकुड़ जाती हैं।
इससे वहाँ रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और आगे का रक्तस्राव कम होता है।

2. प्लेटलेट प्लग का निर्माण (Platelet Plug Formation)

  • प्लेटलेट्स (Thrombocytes) चोट वाली जगह पर इकट्ठा होकर चिपक जाते हैं।
  • वे आपस में जुड़कर एक अस्थायी प्लग बनाते हैं।
  • रासायनिक संकेत छोड़कर और प्लेटलेट्स को बुलाते हैं।

सामान्य प्लेटलेट गिनती: 1,50,000 – 4,50,000 प्रति माइक्रोलीटर

3. जमावट या कोएग्यूलेशन कैस्केड (Coagulation Cascade)

  • रक्त प्लाज्मा में मौजूद थक्का कारक क्रमिक रूप से सक्रिय होते हैं।
  • अंततः थ्रोम्बिन एंजाइम फाइब्रिनोजेन (Factor I) को फाइब्रिन में बदलता है।
  • फाइब्रिन एक मजबूत जाल बनाकर थक्के को स्थिर करता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • थक्के के 13 कारक होते हैं (Factor I–XIII)
  • अधिकतर कारक यकृत (Liver) बनाता है।
  • विटामिन K कारक II, VII, IX और X के लिए आवश्यक है।

रक्त का थक्का बनने में शामिल प्रमुख तत्व

1. प्लेटलेट्स

  • छोटे सेल फ्रेगमेंट
  • सक्रिय होकर प्लग बनाते हैं
  • रासायनिक संकेत छोड़ते हैं

2. थक्का कारक (Coagulation Factors)

  • प्लाज्मा में मौजूद विशेष प्रोटीन
  • एक-एक करके सक्रिय होते हैं
  • अंत में फाइब्रिन जाल बनाते हैं

3. फाइब्रिन निर्माण

थ्रोम्बिन द्वारा फाइब्रिनोजेन को फाइब्रिन में बदला जाता है, जो एक स्थायी थक्का बनाता है।

रक्त का थक्का असामान्य रूप से क्यों बनता है?

जब बिना किसी चोट के थक्का बन जाए, उसे थ्रोम्बस कहते हैं, और यह बहुत खतरनाक हो सकता है।

सामान्य थक्का संबंधी विकार

1. हीमोफीलिया

  • वंशानुगत विकार
  • Factor VIII या IX की कमी
  • मामूली चोट पर भी लंबे समय तक रक्तस्राव

2. वॉन विलेब्रांड रोग

  • सबसे सामान्य वंशानुगत विकार
  • वॉन विलेब्रांड फैक्टर की कमी

3. थ्रोम्बोफिलिया

  • अत्यधिक थक्का बनने की प्रवृत्ति
  • Factor V Leiden Mutation इसका उदाहरण

4. DIC (Disseminated Intravascular Coagulation)

  • पूरे शरीर में थक्के बनने लगते हैं
  • थक्का कारक समाप्त खून बहने लगता है

Monday, November 10, 2025

स्वसन क्या है | हमारे शरीर में ऑक्सी एवं अनॉक्सी स्वसन की भूमिका | Rudra’s IAS Institute, Bhopal


 
स्वसन क्या है | हमारे शरीर में ऑक्सी एवं अनॉक्सी स्वसन की भूमिका | Rudra’s IAS Institute, Bhopal

स्वसन (Respiration) एक अत्यंत महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सभी जीव अपने जीवन क्रियाकलापों के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यह वह प्रक्रिया है जिसमें जीव ऑक्सीजन ग्रहण करता है और भोजन पदार्थों (मुख्यतः ग्लूकोज़) का अपघटन कर ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल उत्पन्न करता है। यही ऊर्जा हमारी सभी शारीरिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं की आधारशिला है। #स्वसन क्या है? “भोजन में संचित रासायनिक ऊर्जा को जैविक क्रियाओं में उपयोग योग्य ऊर्जा (ATP) में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को स्वसन कहा जाता है।” यह प्रक्रिया दो मुख्य रूपों में होती है — #ऑक्सी स्वसन (Aerobic Respiration) #ऐनॉक्सी स्वसन (Anaerobic Respiration) 1. ऑक्सी स्वसन (Aerobic Respiration): यह स्वसन का वह प्रकार है जिसमें ऑक्सीजन की उपस्थिति आवश्यक होती है। इसमें ग्लूकोज़ का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है और अधिकतम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। रासायनिक समीकरण: C₆H₁₂O₆ + 6O₂ → 6CO₂ + 6H₂O + Energy (38 ATP)
मुख्य विशेषताएँ: 1. यह प्रक्रिया कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया में होती है। 2. इसमें ग्लूकोज़ का पूरा विघटन कार्बन डाइऑक्साइड और जल में हो जाता है। 3. ऊर्जा उत्पादन की दृष्टि से यह सबसे प्रभावी प्रक्रिया है। 4. उदाहरण: मनुष्य, पशु, पक्षी, अधिकांश पादप इत्यादि सभी जीव ऑक्सी स्वसन करते हैं। 2. ऐनॉक्सी स्वसन (Anaerobic Respiration): यह स्वसन का वह प्रकार है जिसमें ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसमें ग्लूकोज़ का आंशिक अपघटन होता है। रासायनिक समीकरण (मनुष्य की पेशियों में): C₆H₁₂O₆ → 2C₃H₆O₃ + Energy (2 ATP) (जहाँ C₃H₆O₃ = लैक्टिक अम्ल)
मांसपेशियों में लैक्टिक अम्ल के जमा होने से थकान और दर्द होता है। अधिक कठोर व्यायाम करते समय मांसपेशियों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे वे ऊर्जा बनाने के लिए अवायवीय श्वसन (oxygen-free respiration) करती हैं। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप लैक्टिक एसिड बनता है, जो मांसपेशियों के pH को कम करके अम्लीय वातावरण बनाता है, जिससे थकान और दर्द का अहसास होता है।
रासायनिक समीकरण (यीस्ट में): C₆H₁₂O₆ → 2C₂H₅OH + 2CO₂ + Energy (2 ATP) (जहाँ C₂H₅OH = एथेनॉल)
कार्बन डाइऑक्साइड खाद्य पदार्थ के किसी गाढे घोल यानि बैटर में गैस के बुलबुले बनाकर उसे हल्का और फूला हुआ बनाती है। मुख्य विशेषताएँ: 1. यह प्रक्रिया कोशिकाओं के सायटोप्लाज्म (Cytoplasm) में होती है। 2. इसमें ऊर्जा की मात्रा बहुत कम (सिर्फ 2 ATP) प्राप्त होती है। 3. कुछ सूक्ष्मजीवों (जैसे यीस्ट, बैक्टीरिया) तथा ऑक्सीजन की कमी की स्थिति में मांसपेशियों की कोशिकाएँ यह स्वसन करती हैं।

Sunday, November 9, 2025

पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम 1996 | Fifth Schedule & PESA Act 1996

 


पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम 1996 | Fifth Schedule & PESA Act 1996

🔹 पांचवीं अनुसूची का परिचय

भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची उन प्रावधानों से संबंधित है जो अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए बनाए गए हैं।

🔹 अनुच्छेद 244(1)

  • पांचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में लागू होते हैं।

  • इन चारों राज्यों के लिए छठी अनुसूची लागू होती है।

🔹 पांचवीं अनुसूची से संबंधित प्रमुख राज्य

वर्तमान में 10 राज्यों में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र चिन्हित हैं —
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश।

🔹 मध्य प्रदेश में पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत जिले

झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, खंडवा, बैतूल, सिवनी, मंडला, बालाघाट, मुरैना और रतलाम (सैलाना तहसील)।

🔹 अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा

  • किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है।

  • राष्ट्रपति, संबंधित राज्यपाल से परामर्श के बाद क्षेत्रफल बढ़ा या घटा सकता है।

🔹 राज्य व केंद्र की कार्यकारी शक्तियाँ

  • राज्य की कार्यकारी शक्ति अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित है।

  • केंद्र सरकार राज्य को इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में निर्देश दे सकती है।

  • राज्यपाल को प्रत्येक वर्ष अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी होती है।

🔹 जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC)

  • प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है।

  • परिषद में 20 सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन-चौथाई (15 सदस्य) राज्य विधानसभा के अनुसूचित जनजाति वर्ग से होने चाहिए।

  • इसका उद्देश्य जनजातीय कल्याण से संबंधित नीतियों पर राज्यपाल को सलाह देना है।

🔹 राज्यपाल की शक्तियाँ

राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं –

  • शांति एवं सुशासन के लिए नियम बनाना।

  • भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाना।

  • अनुसूचित जनजातियों के लिए भूमि आवंटन के नियम बनाना।

  • साहूकारी व्यवसाय को नियंत्रित करना।

  • किसी राज्य या संसद के कानून को अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू न करने या संशोधित रूप में लागू करने का अधिकार।

🟢 पेसा अधिनियम 1996 (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act, 1996)

🔹 पृष्ठभूमि

  • संविधान के 73वें संशोधन (1992) द्वारा पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई (24 अप्रैल 1994)।

  • लेकिन अनुच्छेद 243(एम) के अनुसार, पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं थी।

  • भूरिया समिति (1995) की सिफारिशों पर पेसा अधिनियम, 1996 अस्तित्व में आया।

🔹 मुख्य उद्देश्य

  1. अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय स्वशासन को मान्यता देना।

  2. ग्राम सभाओं को भूमि, जल, वन और खनिज संसाधनों पर अधिकार प्रदान करना।

  3. जनजातीय परंपरा और संस्कृति के संरक्षण हेतु स्वायत्त शासन प्रणाली सुनिश्चित करना।

🔹 मध्य प्रदेश में पेसा नियम 2022

  • 15 नवम्बर 2022 (जनजातीय गौरव दिवस) पर मध्य प्रदेश ने अपने पेसा नियमों को अधिसूचित किया।

  • शहडोल में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेसा नियमावली की प्रति भेंट की।

  • इसका उद्देश्य जनजातीय समाज को ग्राम स्तर पर अधिकार संपन्न बनाना है।

🔹 पेसा अधिनियम की मूल भावना

ग्राम सभा सर्वोपरि है” —
ग्राम सभा ही स्थानीय संसाधनों, सामाजिक न्याय, और पारंपरिक निर्णय प्रणाली की सर्वोच्च इकाई मानी गई है।

🔹 सारांश

पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम भारत के जनजातीय समाज के लिए संवैधानिक सुरक्षा कवच हैं।
इनका उद्देश्य जनजातियों की भूमि, संस्कृति और आत्मनिर्भरता की रक्षा करते हुए उन्हें शासन में भागीदार बनाना है।

जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

 


जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Tribes

🔹 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1931 की जनगणना से पहले जनजातियों को “वनवासी”, “आदिवासी” या “गिरीजन” कहा जाता था।

  • 1931 की जनगणना के कमिश्नर जे.एच. हट्टन ने इन्हें पहली बार “आदिम जाति” के रूप में वर्गीकृत किया।

  • बेरियर एल्विन ने इन्हें “भारत का मूल स्वामी” बताया और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण हेतु “राष्ट्रीय उपवन” की अवधारणा दी।

  • जी.एस. घुर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India में इन्हें “पिछड़े हिन्दू” कहा।

  • ठक्कर बापा ने अपनी पुस्तक Tribes of India (1950) में इन्हें “गिरीजन” कहा।

  • ब्रिटिश शासन में इन्हें “एनिमिस्ट” कहा जाता था, पर 1931 में “जनजाति” शब्द का प्रयोग किया गया।


🔹 संविधानिक परिभाषा

  • अनुच्छेद 366(25) – “अनुसूचित जनजाति” का अर्थ उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों से है जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो।

  • अनुच्छेद 342 – राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श कर किसी जनजाति को अनुसूचित घोषित कर सकता है।


🔹 जनजातीय कल्याण हेतु प्रमुख संवैधानिक उपबंध

अनुच्छेदप्रावधानउद्देश्य
15(4), 15(5)शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान हेतु विशेष प्रावधान एवं आरक्षणशिक्षा में समान अवसर
16(4), 16(4A)रोजगार एवं पदोन्नति में आरक्षणप्रशासनिक प्रतिनिधित्व
23-24जबरन श्रम, बाल श्रम पर प्रतिबंधशोषण से सुरक्षा
29भाषा, लिपि एवं संस्कृति की रक्षासांस्कृतिक संरक्षण
46अनुसूचित जाति-जनजाति के शैक्षिक-आर्थिक हितों का संवर्धनसामाजिक न्याय
164उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में “आदिवासी कल्याण मंत्री”नीति-निर्माण में भागीदारी
243Dपंचायतों में आरक्षणस्थानीय स्वशासन में सहभागिता
330-332लोकसभा व विधानसभा में आरक्षणराजनीतिक प्रतिनिधित्व
334आरक्षण अवधि का विस्तार (2030 तक)निरंतर संरक्षण
275केंद्र द्वारा राज्यों को विशेष अनुदानजनजातीय क्षेत्र का विकास

🔹 विशेष अधिनियम व नीतियाँ

  • बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम, 1976

  • अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकार अधिनियम), 2006

  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम – PESA, 1996