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Wednesday, September 17, 2025

Caves in Madhya Pradesh

भीमबैठका शैलाश्रय यह भारत का एक प्रमुख पुरातात्विक स्थल है, जिसका सम्बन्ध प्रागैतिहासिक पुरापाषाण और मध्यपाषण काल से है। 2003 में, यूनेस्को ने भीमबेटका रॉक गुफाओं को विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया। जिला रायसेन में ओबेदुल्लागंज शहर से 9 किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पहाड़ियों के दक्षिणी किनारे पर सात पहाड़ियाँ . विनायक, भोंरावली, भीमबैठका, लाखा जुआर (पूर्व और पश्चिम), झोंदरा और मुनि बाबा की पहाड़ी और 10 किमी क्षेत्र में फैले 750 से अधिक शैलाश्रय इन शैलाश्रयों में मनुष्य लाखों वर्ष पूर्व मानव निवास करता था। इस स्थल एवं इसके प्रागैतिहासिक महत्व का पता लगाने वाले पहले पुरातत्वविद् वी एस वाकणकर उन्होने इन शैलाश्रयों की तुलना स्पेन की अल्तामिरा गुफाओं से की।
विष्णु श्रीधर वाकणकर विष्णु श्रीधर वाकणकर एक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। आपका जन्म मई 19 मई 1919 को नीमच में हुआ था। वाकणकर को 1955 नावादाटोली, 1957 में भीमबेटका शैलाश्रयों, और 1964 में कायथा संस्कृति की खोज का श्रेय दिया जाता है। आपको 1975 में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वाकणकर शोध संस्थान एवं संग्रहालय उज्जैन में स्थित है। वाकणकर ने चंबल और नर्मदा नदियों घाटी में प्राचीन सभ्यताओं की खोज की।
आदमगढ़ की गुफाएं आदमगढ़ की गूफाएं मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले नर्मदा नदी के समीप स्थित आदमगढ़ शैलाश्रयों की खोज 1922 में मनोरंजन घोष द्वारा आदमगढ़ में लगभग 18 शैलाश्रयों हैं जिनमें 11 आश्रयों की पेंटिंग स्पष्ट है तथा अन्य समय के साथ फीके पड़ गए हैं। नागौरी नागौरी पहाड़ी, रायसेन जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर सांची पहाड़ी के सामने बेतवा नदी के पास स्थित मानव रूप में नाग (साँप) की विशाल छवि के कारण इस स्थल को नागौरी के रूप में मान्यता प्राप्त है। नागौरी गांव के पीछे, रॉक शेल्टर का एक समूह है जो मध्ययुगीन काल से मध्यपाषण से संबंधित है।