Wednesday, September 17, 2025
Chalcolithic period in Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश में ताम्र पाषण युग
नवपाषाण काल के अंत में धातुओं का उपयोग आरम्भ हुआ। मनुष्य द्वारा प्रयोग की जाने वाली पहली धातु तांबा थी। मध्य भारत में कई संस्कृतियों का विकास हुआ जिनमें तांबे और पत्थर के औजारों उपयोग बडे पैमाने पर किया जाता था।
यह भारत में प्रथम धातु युग की शुरुआत थी इसलिये तांबे और इसकी मिश्र धातु कांसा जो कम तापमान पर पिघल जाती थी, इस अवधि के दौरान विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में उपयोग की जाती थी।
ताम्रपाषाण काल यानी कैल्को यानी तांबा और लिथिक यानी पाषाण
ताम्रपाषाण संस्कृति हड़प्पा संस्कृति के सामानान्तर चलती रही। वास्तव में ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति ग्रामीण थी, और हड़प्पा सभ्यता नगरीय। ताम्रपाषाण युग के लोग शिकार, मछली पकड़ने और कृषि पर आश्रित होते थे। हड़प्पा सभ्यता के व्यापारियों को खाद्यान्न की आपूर्ति ताम्रपाषाण संस्कृति के किसान ही करते थे। इस संस्कृति का काल 2500 ईसा पूर्व से 700 ईसा पूर्व तक था। इनके घर मिट्टी के बने होते थे। ताम्रपाषाण संस्कृति की विशेषता पहिया एवं मिट्टी के बर्तन थे जो ज़््यादातर लाल और नारंगी रंग के होते थे। ताम्रपाषाण काल के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के मृदभांडों का प्रयोग किया जाता था। काले और लाल मिट्टी के मृदभांड काफी प्रचलित थे। गैरिक मृदभांडों
(Ochre & Coloured Pottery -OCP) का भी प्रचलन था।
मालवा संस्कृति
मालवा संस्कृति एक ताम्रपाषाण कालीन पुरातात्विक संस्कृति थी जो मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में मौजूद थी। मालवा संस्कृति के स्थल कई स्थानों पर खोजे गये जिनमें एरण, तेवर, कायथा, महेश्वर, नागदा और नवदाटोली शामिल हैं। एरण एरण मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक प्राचीन नगर और पुरातात्विक स्थल है।
एरण
एरण जिसका प्राचीन नाम एरिकिना था, आधुनिक सागर जिले में बीना (प्राचीन वेनवा) नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह एक अतिमहत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। यहां से ताम्रपाषाण काल से लेकर गुप्त काल तक के कई साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। हाल की खुदाई में विभिन्न प्रकार की पुरावशेषों का पता चला है जिनमें एक तांबे का सिक्का, एक लोहे का तीर का सिरा, टेराकोटा मनका, तांबे के सिक्कों के साथ पत्थर के मोती, पत्थर के सेल्ट, स्टीटाइट और जैस्पर के मोती आदि शामिल हैं। सादे, पतले भूरे बर्तनों के कुछ नमूनों का मिलना उल्लेखनीय है। इस स्थल पर कुछ धातु की वस्तुओं से लोहे के उपयोग का प्रमाण मिला है। यह गुप्तकालीन एरीकिना प्रदेश की राजधानी थी। यहां से समुद्रगुप्त का अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख वर्तमान में कलकत्ता संग्रहालय में रखा हुआ है। यहां से ही 510 ई का भानुगुप्त का अभिलेख प्राप्त हुआ, जिसे भारत में सती प्रथा का सबसे प्रथम साक्ष्य माना जाता है। 510 ई में हूण शासक तोरामन ने मालवा पर आक्रमण किया और भानुगुप्त तथा उसके स्थानीय शासक गोपराज को हराकर एरण पर कब्जा कर लिया। गोपराज का युद्ध में मारा गया जिसके बाद उसकी पत्नी सती हो गई। इसके अतिरिक्त यहां से 6वीं शताब्दी का तोरामन का वराह अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह 11 फीट (3.4 मीटर) ऊंची लाल बलुआ पत्थर की वराह प्रतिमा की गर्दन पर संस्कृत में 8 पंक्तियों में उकेरा गया है। यह प्रतिमा लाल बलुआ से निर्मित है। वाराह को भगवान विष्णु का अवतार माना है। हूणों के शासक राजा तोरमाण का नाम मालवा (पृथ्वी पर शासन करने वाले) पर शासन करने वाले के रूप में है। इस प्रतिमा एवं विष्णुमंदिर का निर्माण धन्य विष्णु नामक विष्णु उपासक ने निर्मित करवाया था।
तेवर (जबलपुर)
तेवर (त्रिपुरी) गाँव जबलपुर-भोपाल राजमार्ग पर जबलपुर से 12 किमी पश्चिम में स्थित है। यहां से ताम्रपाषाण कालीन अवशेषों के साथ साथ कुषाण, शुंग, सातवाहन और कलचुरी काल के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहां से खुदाई में माइक्रोलिथ के साथ-साथ काले और लाल बर्तन संस्कृति के अवशेष, सातवाहन काल के सिक्के, व चीनी मिट्टी के लाल बर्तन भी मिले।
महेश्वर
महेश्वर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले का एक कस्बा है। महेश्वर की पहचान महिष्मती के प्राचीन शहर के रूप में की जाती है। महाभारत काल में यह हैहय राजवंश की राजधानी थी। अठारहवीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने इसे अपनी राजधानी बनाया। महेश्वर 5वीं शताब्दी से हथकरघा बुनाई का केंद्र रहा है। रानी देवी अहिल्या बाई होल्कर के शासन में इसकी लोकप्रियता बढ़ी। कहा जाता है कि अहिल्याबाई ने ही पहली साड़ी डिजाइन की थी। ये साड़ियाँ शाही दरबार की महिला सदस्यों द्वारा पहनी जाती थीं।
कायथा
कायथा मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में एक पुरातात्विक स्थल है। यह स्थल, छोटी काली सिंध नदी (चंबल नदी की एक सहायक नदी) के दाहिने किनारे पर स्थित है। सन 1964 में विष्णु श्रीधर वाकणकर ने कायथा के पुरातात्तिवक महत्व का पता लगाया। कायथा संस्कृति मालवा क्षेत्र में पहली ज्ञात कृषक बस्ती का प्रतिनिधित्व करती है। यहां से उन्नत तांबा धातु विज्ञान और पत्थर के ब्लेड उद्योग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। रेडियोकार्बन डेटिंग के माध्यम से इस संस्कृति की अवधि 2400 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक आंकी गयी है।
नवदाटोली
नवदाटोली मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में कसरावद से मात्र 6 किमी की दूरी पर नर्मदा नदी पर स्थित एक ताम्रपाषाण कालीन बस्ती है। भारतीय इतिहास के प्राचीन और मध्यकालीन काल में कसरावद एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र था। कसरावद में कुछ बौद्ध अवशेषों और स्तूपों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा श्राष्ट्रीय महत्व के स्थलश् माना जाता है।
नागदा
नागदा में प्राचीन सांस्कृतिक स्थल चंबल नदी के पास मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है। नागदा के लोग मुख्य रूप से कृषि-प्रधान थे। वे संभवतः कीचड़-ईंट के आवासों में रहते थे।




