Wednesday, September 17, 2025
Madhya Pradesh in Mauryan Period
मौर्य काल में मध्य प्रदेश
मौर्य वंश के शासनकाल में अवंती अवंती राष्ट्र के से साम्राज्य का पश्चिमी प्रांत बना जिसकी राजधानी उज्जैन थी। रुद्रदामन-प् (150 ईसवी) के जूनागढ़ रॉक शिलालेख में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में पश्चिमी प्रांत के राज्यपाल के रूप में पुष्यगुप्त का उल्लेख है।
अगले शासक बिन्दुसार के शासनकाल में राजकुमार अशोक को अवंती का राज्यपाल बनाया गया। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक की पत्नी देवी विदिशा की रहने वाली थी।
अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। पुष्यमित्र शुंग के समय, उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा में मगध का वाइसराय नियुक्त किया गया, लेकिन उसने व्यावहारिक रूप में मगध से स्वतंत्र शासन किया।
सांची का स्तूप
सांची में स्थित स्तूप भारत की सबसे पुरानी शैल संरचनाओं में से एक और भारतीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण स्मारक है।
यह मूल रूप से सम्राट अशोक द्वारा निर्मित किया गया था जिनकी पत्नी देवी, विदिशा के एक बौद्ध व्यापारी की बेटी थीं।
इनमें सबसे पुराना, और सबसे बड़ा स्मारक सांची का महान स्तूप है, महान स्तूप को स्तूप नंबर 1 भी कहा जाता है, जिसे शुरू में मौर्यों के अधीन बनाया गया था। साथ में अशोक का एक स्तंभ भी मौजूद है।
दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में, शुंग काल के दौरान, मूल ईंट संरचना को उसके आकार से दोगुना बड़ा किया गया और टीले को बलुआ पत्थर की सिल्लियों से ढक दिया गया।
स्तूप में सबसे विस्तृत परिवर्धन सातवाहन काल के दौरान ईसा पूर्व पहली शताब्दी से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक हुए थे। स्तूप में चार प्रस्तर-द्वार (तोरण) चार प्रमुख दिशाओं में जोड़े गए। इन तोरणो में दो प्रस्तर स्तंभ शामिल हैं जिनके ऊपर स्तंभ शिखर (खंभे का सबसे ऊपरी हिस्सा) बने हुए हैं ।
सातवाहन शासकों के शासनकाल में महान स्तूप का आकार बढ़़ाकर उसे द्वारों और रेलिंग से सजाया गया तथा पास में ही दो अन्य छोटे स्तूप, स्तूप नंबर 2 और स्तूप नंबर 3 स्तूप भी निर्मित किये गये।
स्तूप नंबर 1 में महात्मा बुद्ध के अवशेष संरक्षित किये गये हैं। कहा जाता है कि अशोक के शासन काल में आयोजित तीसरे बौद्ध परिषद में भाग लेने वाले दस संतों के अवशेष स्तूप संख्या 2 में संरक्षित किये गये हैं।
उनमें से मोगलीपुत्ततिस्स भी एक हैं जिन्होने तीसरे बौद्ध परिषद की अध्यक्षता की।
कहा जाता है कि बुद्ध के शिष्यों सारिपुत्र और महामोग्लायन, को स्तूप संख्या 3 में संरक्षित किये गये हैं।
गुप्त काल के दौरान साँची में और परिवर्धन किए गए। इनमें एक बौद्ध मंदिर और एक सिंह स्तंभ शामिल हैं। इस महान स्तूप के कटघरे पर चौथी शताब्दी ईस्वी का चंद्रगुप्त द्वितीय का विजय शिलालेख उत्कीर्णित है। कहा जाता है कि यह स्थल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तेरहवीं शताब्दी ईस्वी तक एक संपन्न धार्मिक केंद्र रहा है।
14 वीं शताब्दी से 1818 तक सांची निर्जन और विरान रहा। 1818 में जनरल हेनरी टेलर ने इस स्थल की खोज की। सर जॉन मार्शल ने 1919 में यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे बाद में वर्तमान संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया।
सांची स्तूप सर्किट
सांची के आसपास लगभग बीस किलोमीटर के दायरे में स्तूपों के कुल चार समूह हैं- दक्षिण-पूर्व में भोजपुर और अंधेर, दक्षिण-पश्चिम में सोनारी और पश्चिम में सतधारा तथा दक्षिण में, लगभग 100 किमी दूर, सारू मारू है।
सतधारा के स्तूप
सतधारा (सतधारा) मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में हलाली नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। यह सांची से लगभग 14 किमी दूर स्थित है। सतधारा के पास हलाली नदी बहती है, जो आगे चलकर बैस नदी बन जाती है। यहां पर पहले सात धाराएं रही होंगी, इसी कारण ही इस क्षेत्र का नाम सतधारा पड़ गया।
सोनारी, अंधेर और मुरेल खुर्द के साथ सतधारा सांची के आसपास विकसित बौद्ध सर्किट को पूरा करती है। इन विभिन्न स्थलों से पाए गए कुछ अवशेषों के नाम सांची के स्तूप 2 के अवशेष शिलालेखों में सूचीबद्ध हेमावता भिक्षुओं के नाम से मेल खाते हैं।
सतधारा के स्तूप भी सांची के समकालीन ही है और इनका निर्माण भी सम्राट अशोक द्वारा ही करवाया गया था। तीसरी शताब्दी में बने यह स्तूप 13 मीटर तक ऊंचे हैं।
यहां के स्तूपों पर रॉक पेंटिंग्स भी बनी हुई है। मुख्य स्तूप क्रमांक 1 ईंटों से निर्मित है, जिससे बाद में पत्थरों से ढंका गया है।
यहां पर दो बौद्ध विहार भी बने हुए हैं।
भोजपुर स्तूप
भोजपुर स्तूप, जिसे मुरेलखुर्द स्तूप या मोरेल खुर्द स्तूप भी कहा जाता है, रायसेन जिले के सांची के दक्षिण-पूर्व में लगभग 45 किमी दूर भोजपुर में स्थित लगभग तीस स्तूपों का एक समूह है।
अंधेर स्तूप
अंधेर स्तूप तीन स्तूपों का एक समूह है जो भारत के मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के साँची से 19 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। स्तूप क्रमांक 1 का काल लगभग 150 ईसा पूर्व माना जा सकता है। यह तीन स्तूपों में सबसे बड़ा है, और इसके चारों ओर पत्थर के अवरोध (वेदिका या रेलिंग) के अवशेष हैं। स्तूप संख्या 2 और संख्या 3 में उन भिक्षुओं के समान नामों के साथ ब्राह्मी में शिलालेख पाए गए जिनके अवशेष सांची स्तूप संख्या 2 और सोनारी (स्तूप संख्या 2 के लिए वाची और मोग्गलिपुत और स्तूप संख्या 3 के लिए हरितिपुत) में पाए गए थे।
सारू मारू
सारू मारू एक प्राचीन मठ परिसर है जहां से सैंकडों स्तूप और बौद्ध गुफाएं प्राप्त हुई हैं।
यह स्थल मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के बुधनी तहसील के पनगुरिया गांव के पास स्थित है।
यहां से बौद्ध गुफाओं पर अशोक के अभिलेख मिले है।
यह स्थल सांची से लगभग 120 किमी दक्षिण में है।



