भाग 1: 1857 का विद्रोह – प्रमुख नेता एवं
घटनाएँ
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व्यक्ति/केंद्र |
संबंधित तथ्य (विस्तृत विवरण) |
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मंगल पांडे |
जन्म 19 जुलाई 1827 को बलिया, उत्तर प्रदेश के नगवा गाँव में
हुआ था। वे बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की
पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। उन्होंने 29 मार्च 1857 को चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग
करने से इनकार कर दिया। 8 अप्रैल 1857 को उनका कोर्ट मार्शल किया गया
और फाँसी दे दी गई। |
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विद्रोह का आरंभ |
24 अप्रैल 1857 को मेरठ में 3 बंगाल लाइट कैवलरी के सिपाहियों
ने चर्बी वाले कारतूस का उपयोग करने से मना किया। 10 मई 1857 को 3 कैवलरी के सैनिकों ने विद्रोह
कर दिया। |
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बहादुर शाह ज़फर |
उनका जन्म 24 अक्टूबर 1775 को दिल्ली में हुआ था। उनकी माँ लालबाई हिंदू परिवार
से थीं और पत्नी जीनत महल थीं। महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब उनके दरबार में रहते थे। 11 मई को उन्हें 'शहंशाह-ए-हिन्दूस्तान' घोषित किया गया। उन्होंने मिर्ज़ा मुग़ल को
प्रधान सेनापति नियुक्त किया। 20 सितंबर को उन्होंने हुमायूं के मकबरे में आत्मसमर्पण किया। 7 अक्टूबर 1858 को उन्हें रंगून (बर्मा) भेज दिया गया, जहाँ 7 नवंबर 1862 को उनकी मृत्यु हो गई। |
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नाना साहब पेशवा |
बचपन का नाम धुंधूपंत था, जन्म 1824 में महाराष्ट्र के वेणु गाँव
में हुआ। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 1827 में उन्हें गोद लिया। तात्या टोपे, अजीमुल्ला खान और मणिकर्णिका
उनके बचपन के मित्र थे। अंग्रेजों ने पेशवा की मृत्यु
के बाद उन्हें उत्तराधिकारी मानने और पेंशन देने से इनकार कर दिया। |
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सती चौरा हत्याकांड |
27 जून को नाना साहब के आश्वासन पर इलाहाबाद जा रहे अंग्रेज
अधिकारियों और उनके साथियों पर गोली चलाई गई, जिसमें जनरल व्हीलर सहित लगभग 350 अंग्रेज मारे गए। |
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बीबीघर हत्याकांड |
मेजर जनरल हेनरी हैव्लॉक की
सेना कानपुर के निकट पहुँचने पर 15 जुलाई को हुसैनी खानुम ने बीबीघर में बंद अंग्रेज महिलाओं और बच्चों की हत्या करवा दी। |
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तात्या टोपे |
मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग भट्ट। वे
नाना साहब के मित्र और सैन्य सलाहकार थे। नरवर राज्य के राजा मानसिंह के विश्वासघात के कारण 8 अप्रैल 1859 को पकड़े गए। उन्हें 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में फाँसी दी गई। अंग्रेज पर्सी क्रॉस ने उन्हें भारतीय विद्रोह में सबसे प्रखर मस्तिष्क का नेता बताया। |
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बेगम हजरत महल |
अवध के नवाब वाजिद अली शाह की
दूसरी पत्नी थीं, मूल नाम मुहम्मदी खानुम। लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा कुशासन का
आरोप लगाकर अवध पर कब्जा किया गया था। उन्होंने 30 मई 1857 को ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ
विद्रोह किया। 1879 में नेपाल में उनकी मृत्यु हुई। |
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मौलवी अहमदुल्लाह शाह |
उन्हें अवध क्षेत्र में विद्रोह
के प्रकाशस्तंभ के रूप में जाना जाता था। वे अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो सर
कॉलिन कैंपबेल को दो बार हराने की हिम्मत रखते थे। उन्हें पकड़ने के लिए 50,000 चांदी के सिक्कों का इनाम रखा गया था। राजा जगन्नाथ सिंह ने उन्हें
मारकर उनका सिर अंग्रेजों को प्रस्तुत किया। |

