भाग 2: दिल्ली सल्तनत - प्रारंभिक शासक
और खिलजी वंश
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शासक/वंश |
अवधि/तथ्य |
महत्वपूर्ण विवरण/उपलब्धियाँ |
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गुलाम/मामलुक वंश |
1206–1290 (84 वर्ष) |
दिल्ली सल्तनत की स्थापना तुर्क
आक्रमणों का परिणाम थी। |
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कुतुबुद्दीन ऐबक |
1206–1210 |
गुलाम वंश का संस्थापक। उसने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की। |
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ऐबक की उपाधियाँ |
कुरान खान, लाखबख्श |
कुरान खान (कुरान की आयतों का सुरीला
उच्चारण करने वाला) और लाखबख्श (लाखों का देने वाला) कहा जाता
था। |
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निर्माण कार्य (ऐबक) |
कुव्वत-उल-इस्लाम, अढ़ाई दिन का झोंपड़ा |
दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम (भारत की पहली मस्जिद) तथा अजमेर
में अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का निर्माण कराया। |
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कुतुबमीनार |
आरंभकर्ता |
उसने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार
काकी की याद में कुतुबमीनार का
निर्माण कार्य आरंभ करवाया। |
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ऐबक की मृत्यु |
1210 ईस्वी |
चौगान (पोलो) खेलते समय लाहौर
में मृत्यु हो गई। |
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इल्तुतमिश |
1210–1236 |
दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक। |
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वैधता |
मंसूर (स्वीकृति पत्र) |
उसने 1229 में अब्बासी खलीफा से मंसूर
प्राप्त कर अपने राज्य को वैधता प्रदान की। |
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उपाधि |
गुलामों का गुलाम |
वह 26 वर्ष तक ऐबक का गुलाम था, इसलिए उसे गुलामों का गुलाम भी कहते हैं। |
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व्यवस्थाएँ |
इक्ता व्यवस्था, तुर्क-ए-चहलगानी |
इक्ता व्यवस्था लागू की। 40 तुर्क सरदारों का दल गठित किया, जिसे तुर्क-ए-चहलगानी या चालीसा कहते थे। |
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सिक्के |
टका और जीतल |
चांदी का टका और तांबे का जीतल नामक दो सिक्के जारी किए। भारत
में सिक्के चलाने वाला प्रथम सुल्तान था। |
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रजिया सुल्तान |
1236–1240 |
भारत की प्रथम महिला सुल्तान और इल्तुतमिश की पुत्री।
पुरुषों की तरह चोगा (काबा) और टोपी (कुलाह) पहनकर दरबार में जाती थी। |
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हब्शी सलाहकार |
जमाल-उद-दीन-याकूत |
उसे अश्वशाला प्रमुख नियुक्त
किया गया था। |
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रजिया की मृत्यु |
1240 ईस्वी |
तुर्क सरदारों ने कैथल (हरियाणा) में रजिया और
अल्तूनिया को मरवा डाला। |
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नासिरुद्दीन महमूद |
1246–1265 |
एक धार्मिक व्यक्ति, जिसे दरवेशी सुल्तान कहा जाता था। कुराण की
प्रतिलिपियाँ तैयार करता था। |
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गयासुद्दीन बलबन |
1265–1287 |
सुल्तान बनने के बाद तुर्क-ए-चहलगानी की शक्ति नष्ट कर दी। रक्त और लौह की नीति अपनाई। |
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उपाधि/प्रथाएँ |
जिल्ले-इलाही, सिजदा, पाबोस, नौरोज |
स्वयं को जिल्ले-इलाही (अल्लाह की छाया) घोषित किया।
ईरानी प्रथाओं सिजदा (झुककर अभिवादन करना) और पाबोस (पैर चूमना) को आरंभ किया। |
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सैन्य विभाग |
दीवान-ए-अर्ज |
इस विभाग की स्थापना की, इसके प्रमुख को आरिज-ए-मुमालिक कहते थे। |
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खिलजी क्रांति |
1290 |
खिलजी वंश की स्थापना इल्बरी
वंश के एकाधिकार का अंत थी, जिसे खिलजी क्रांति के नाम से जाना जाता है। |
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जलालुद्दीन फिरोज खिलजी |
1290–1296 |
70 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। प्रथम सुल्तान जिसने कहा कि शासन का आधार शासितों की इच्छा होनी चाहिए। किलखोरी को राजधानी
बनाया। |
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अलाउद्दीन खिलजी |
1296–1316 |
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का
भतीजा, छल से उसकी हत्या कर दी। 1296 ईस्वी में राज्याभिषेक हुआ। |
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उपाधि |
सिकंदर-ए-सानी |
विश्व विजय करना चाहता था, इसलिए उसने अपने सिक्के पर सिकंदर-ए-सानी खुदवाया। |
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मलिक काफूर |
हजार दिनारी |
गुजरात अभियान (1297) के दौरान नुसरत खान ने मलिक
काफूर को 1000 दीनार में खरीदा था, इसलिए काफूर को 'एक हजार दिनारी' कहा जाता है। |
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मेवाड़ आक्रमण कारण |
रानी पद्मिनी |
राजा रतन सिंह की रानी पद्मिनी
के प्रति उसका आकर्षण तात्कालिक कारण था। |
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नाम परिवर्तन |
खिज्राबाद |
चित्तौड़ विजय के बाद, अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का नाम
बदलकर अपने पुत्र खिजर खान के नाम पर खिज्राबाद कर दिया। |
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दक्षिण अभियान |
नेतृत्व/उपलब्धि |
दक्कन विजय का नेतृत्व मलिक काफूर को सौंपा गया। मलिक काफूर ने
वारंगल के राजा प्रतापरुद्र देव से विश्व विख्यात कोहिनूर हीरा प्राप्त किया था। |
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राजस्व सिद्धांत |
शरीयत/उलेमा का हस्तक्षेप नहीं |
वह पहला सुल्तान था जिसने घोषणा
की कि शासन और राजस्व के मामलों में शरियत और उलेमा का दखल बर्दाश्त नहीं किया
जाएगा। |
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राजस्व विभाग |
दीवान-ए-मुस्तखराज |
बकाया राशि वसूलने के लिए इस
विभाग की स्थापना की। |
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नवीन कर |
घरी, चरी |
घरी (भू-संपत्ति कर) तथा चरी (चारागाह कर) नामक नए कर लगाए। |
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भू-राजस्व |
दर/मापन |
उसने कुल उत्पादन का 50% भू-राजस्व निर्धारित किया। भूमि की पैमाइश
की व्यवस्था लागू की। |
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सैन्य सुधार |
हुलिया और दाग |
सैनिकों का हुलिया रखने और घोड़ा दागने की प्रथा लागू की। |
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बाजार सुधार |
नियंत्रण प्रणाली |
उसने बाजार नियंत्रण प्रणाली शुरू की, जिसकी विस्तृत जानकारी तारीख-ए-फिरोजशाही (बरनी) से मिलती है। उसने शहना-ए-मंडी (बाजार का अधीक्षक) नियुक्त
किया। |
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अमीर खुसरो |
उपाधि/योगदान |
उन्हें तूत-ए-हिन्द (भारत का तोता) कहा जाता है। खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय। कव्वाली, सितार और तबला उनकी देन माने जाते हैं। |
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मुबारक खिलजी |
उपाधि |
उसने स्वयं को खलीफा घोषित किया और अलवसिक बिल्लाह की उपाधि ली। |
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