भाग 3: महाजनपद
काल और मगध साम्राज्य का उदय
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वंश/शासक |
काल/विवरण और उपलब्धि |
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उत्तर वैदिक काल |
लगभग 1000 ईस्वी में लोहे (श्याम या कृष्ण अयस) का ज्ञान हुआ, जिससे व्यवस्थित खेती शुरू हुई।
कृषि
भूमि के महत्व के कारण बड़े राज्यों (महाजनपदों) का निर्माण हुआ। देवता: इंद्र, अग्नि ने महत्व खो दिया; प्रजापति, विष्णु, रुद्र प्रमुख देवता बन गए। |
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16 महाजनपद |
प्रारंभिक
बौद्ध और जैन किताबों में 16 महाजनपदों का वर्णन मिलता है। मगध 16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली
था, जिसका कारण सक्षम राजा, लोह खनिज संसाधन, उपजाऊ कृषि भूमि, और भौगोलिक अवस्थिति थी। कुछ महाजनपद गणराज्य के रूप में
थे, जिन्हें संघ कहा जाता था (जैसे वज्जी और
लिच्छवी)। |
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हर्यक वंश |
बिम्बिसार (संस्थापक, 544–492 ई.पू.): उसे सेनिया कहते थे, क्योंकि वह नियमित सेना रखने
वाला भारत का पहला राजा था। उसने राजगृह नगर बसाया और अंग
राज्य पर विजय प्राप्त की। |
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अजातशत्रु |
(492–460 ई.पू.): उसे कूणिक और पितृहंता कहते थे। उसने
युद्ध में रथ मूसल और महाशिला कंटक नामक हथियारों का प्रयोग किया। उसके काल में 483 ई.पू. में राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ। |
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उदयिन |
(460–444 ई.पू.): इसने पाटलिपुत्र (गंगा और सोन
के संगम पर) बसाया और राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की। |
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शिशुनाग वंश |
शिशुनाग (413–395 ई.पू.) ने अवन्ति महाजनपद पर
कब्जा किया। कालाशोक के समय वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई। |
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नंद वंश |
महापद्मनंद (संस्थापक): उसे उग्रसेन कहते थे। उसने एकराट् और सर्व क्षत्रांतक जैसी उपाधियाँ धारण कीं। उसे केंद्रीय शासन पद्धति का जनक कहा जाता है। व्याकरण
के आचार्य पाणिनी महापद्मनंद के मित्र थे। धनानंद अंतिम शासक था, जिसके शासनकाल में सिकंदर का आक्रमण हुआ था। |

