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Wednesday, October 15, 2025

रिवीजन नोट्स प्राचीन भारत भाग 2: सिंधु घाटी सभ्यता

 



विषय/कालखंड

मुख्य विवरण और तथ्य

परिचय

यह प्रागैतिहासिक कालीन विश्व की प्रमुख सभ्यताओं में से एक है।

रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर इसका काल 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. के बीच निर्धारित है।

इसे भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता और कांस्य युगीन सभ्यता कहते हैं।

खोज एवं विस्तार

1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के निर्देशन में इसकी व्यवस्थित खुदाई हुई।

यह सभ्यता लगभग 13 लाख वर्ग किमी के त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली थी।

विस्तार: पूर्व में आलमगीर (मेरठ), पश्चिम में सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान), उत्तर में मांडा (जम्मू-कश्मीर), और दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक।

अर्थव्यवस्था

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग लोहा नहीं जानते थे। ये खेती के लिए हल का उपयोग करते थे।

ये कपास का ज्ञान रखने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति थे, जिसे यूनानी लोग सिंडन कहते थे।

व्यापार वस्तु विनिमय से होता था, क्योंकि सिक्कों का कोई प्रमाण नहीं मिला।

मेसोपोटामिया के अभिलेखों में सिंधु क्षेत्र के लिए मेलुहा शब्द का उपयोग किया गया है।

कूबड़ वाला साँड़ इनका सबसे प्रिय पशु था।

प्रमुख स्थल

हड़प्पा:

रावी नदी के किनारे, छह अन्नागार एक कतार में, श्रमिक आवास, ताँबे का दर्पण, शृंगार बॉक्स, शवों को दफनाया जाता था।

मोहनजोदड़ो:

सिंधु नदी के किनारे, अर्थ है 'मृतकों का टीला'। इसे हड़प्पा के साथ जुड़वाँ नगर कहते हैं।

यहाँ से विशाल स्नानागार (सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल), विशाल अन्नागार (सबसे बड़ी इमारत), काँसे की नग्न नर्तकी, और पशुपति शिव की मुहर मिली है।

कालीबंगा:

घग्घर नदी, जुते हुए खेत, सात अग्नि वेदिकाएँ, अलंकृत ईंटें।

चन्हुदड़ो:

सिंधु नदी, एकमात्र स्थल जहाँ किलेबंदी के अवशेष नहीं मिले। यहाँ से वक्राकार ईंटें, दवात, लिपस्टिक, मनके का कारखाना मिला है।

लोथल:

भोगवा नदी (गुजरात), बंदरगाह/गोदी, धान की भूसी, मिट्टी का पानी में चलने वाला जहाज।

धौलावीरा:

एकमात्र नगर जो तीन भागों में विभक्त था, जल संरक्षण प्रणाली के साक्ष्य।

राखीगढ़ी:

भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल।

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