भाग 9: कला और संस्कृति – मूर्तिकला, वास्तुकला और नृत्य
|
कला का प्रकार |
शैली/उदाहरण |
विशेषताएँ |
|
मूर्तिकला |
गांधार शैली (इंडोग्रीक) |
प्रथम शताब्दी ईस्वी में कनिष्क
के शासनकाल में विकसित हुई। यूनानी (ग्रीक) और हिंदुस्तानी संस्कृति के मिश्रण
से बनी। भूरे बलुआ पत्थरों का प्रयोग हुआ। |
|
मथुरा शैली |
पहली से तीसरी शताब्दी के मध्य
विकसित। यह पूर्णतः स्वदेशी शैली है। लाल बलुआ पत्थरों का उपयोग। इसमें बुद्ध, जैन तीर्थंकरों और हिंदू
देवी-देवताओं की मूर्तियां बनीं। |
|
|
अमरावती शैली |
आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के
किनारे विकसित। सफेद संगमरमर पर बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान की मुद्रा
में दिखाया गया है। |
|
|
वास्तुकला |
नागर शैली |
उत्तर भारत में प्रचलित, मंदिर प्रायः वर्गाकार होते हैं। शिखर त्रिकोणाकार
होता है। शिखर के ऊपर आमलक (गोलाकार रचना) पाया जाता है। |
|
उड़ीसा शैली |
शिखर को देउल और मंडप को जगमोहन कहा जाता है। कोणार्क का सूर्य
मंदिर और पुरी का जगन्नाथ मंदिर इसके उदाहरण हैं। |
|
|
खजुराहो शैली |
10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच चंदेल
शासकों द्वारा निर्मित। कंदरिया महादेव मंदिर (नागर शैली का उत्कृष्ट उदाहरण)।
ये अध्यात्म और भोग के समन्वय का प्रतीक माने जाते हैं। |
|
|
द्रविड़ शैली (चोल शैली) |
मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरल
में। इसकी विशेषता गोपुरम (भव्य प्रवेश द्वार) और पिरामिड
आकार का विमान (शिखर के स्थान पर) है। तंजावुर
स्थित बृहदेश्वर मंदिर प्रमुख उदाहरण। |
|
|
मामल्ल शैली (पल्लव शैली) |
नरसिंह वर्मन द्वारा विकसित।
महाबलिपुरम के पंचरथ मंदिर इसके विशिष्ट उदाहरण हैं, ये एकाश्म मंदिर हैं (एक ही पत्थर को काटकर
निर्मित)। |
|
|
बेसर शैली |
नागर और द्रविड़ शैलियों का
मिश्रित रूप। बादामी के चालुक्य शासकों ने विकसित की। |
|
|
नृत्य कला |
नटराज |
भगवान शिव को नृत्य का स्वामी
माना जाता है। उनकी मूर्तियाँ तांडव नृत्य करते हुए, एक छोटे बौने अपस्मारा (बुराइयों का प्रतीक) के ऊपर
नृत्य करते हुए दिखाई गई हैं। |
|
नाट्य शास्त्र |
भरतमुनि द्वारा रचित, नृत्य कला का व्यवस्थित अध्ययन
मिलता है। इसे पाँचवाँ वेद माना जाता है। |
|
|
भरतनाट्यम |
तमिलनाडु का सबसे प्राचीन नृत्य, 2000 वर्ष से अधिक पुराना। इसे
प्राचीन भारत में सादिर के नाम से भी जाना जाता था। इसमें कर्नाटक गायन शैली का उपयोग
होता है। |
|
|
कुचिपुड़ी |
आंध्र प्रदेश का नृत्य। नर्तकी
सिर पर कलश और पैरों को थाली के किनारों पर रखकर नृत्य करती है, जिसे तरंगम कहते हैं। |
|
|
कथकली |
केरल का पुरुष प्रधान नृत्य।
नायक चरित्र (पाचा) के चेहरे का रंग हरा, खलनायक (ताटी) का लाल होता है। |
|
|
मोहिनीअट्टम |
केरल का एकल नृत्य। इसे गरीबों की कथकली भी कहा जाता है। |
|
|
कत्थक |
उत्तर प्रदेश का नृत्य। अवध के
नवाब वाजिद अली शाह द्वारा पुनर्जीवित किया गया। |
|
|
सतरिया |
असम का नृत्य। वैष्णव धर्म के
प्रचार के उद्देश्य से शुरू हुआ। संगीत नाटक अकादमी द्वारा 2000 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा
मिला। |
|
|
चित्रकला |
मधुबनी (मिथिला) |
बिहार की चित्रकला। रामायण काल
से जुड़ी हुई, जब मिथिला के राजा ने सीता-राम
विवाह पर प्रजा को दीवारों पर चित्र बनाने को कहा था। |
|
बणी-ठणी (किशनगढ़) |
राजा सावंत सिंह ने विकसित की।
उन्होंने अपनी दासी को राधा के रूप में चित्रित किया, जिसे बणी-ठणी नाम दिया। |
|
|
मुगल लघु चित्रकला |
जहाँगीर के शासनकाल में शीर्ष
पर पहुँची। भारतीय और फ़ारसी चित्रकला का बेहतरीन नमूना है। |

