Powered By Blogger

Friday, October 17, 2025

भाग 9: कला और संस्कृति – मूर्तिकला, वास्तुकला और नृत्य

 


भाग 9: कला और संस्कृति – मूर्तिकला, वास्तुकला और नृत्य

कला का प्रकार

शैली/उदाहरण

विशेषताएँ

मूर्तिकला

गांधार शैली (इंडोग्रीक)

प्रथम शताब्दी ईस्वी में कनिष्क के शासनकाल में विकसित हुई। यूनानी (ग्रीक) और हिंदुस्तानी संस्कृति के मिश्रण से बनी। भूरे बलुआ पत्थरों का प्रयोग हुआ।

मथुरा शैली

पहली से तीसरी शताब्दी के मध्य विकसित। यह पूर्णतः स्वदेशी शैली है। लाल बलुआ पत्थरों का उपयोग। इसमें बुद्ध, जैन तीर्थंकरों और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनीं।

अमरावती शैली

आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे विकसित। सफेद संगमरमर पर बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान की मुद्रा में दिखाया गया है।

वास्तुकला

नागर शैली

उत्तर भारत में प्रचलित, मंदिर प्रायः वर्गाकार होते हैं। शिखर त्रिकोणाकार होता है। शिखर के ऊपर आमलक (गोलाकार रचना) पाया जाता है।

उड़ीसा शैली

शिखर को देउल और मंडप को जगमोहन कहा जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर और पुरी का जगन्नाथ मंदिर इसके उदाहरण हैं।

खजुराहो शैली

10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच चंदेल शासकों द्वारा निर्मित। कंदरिया महादेव मंदिर (नागर शैली का उत्कृष्ट उदाहरण)। ये अध्यात्म और भोग के समन्वय का प्रतीक माने जाते हैं।

द्रविड़ शैली (चोल शैली)

मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरल में। इसकी विशेषता गोपुरम (भव्य प्रवेश द्वार) और पिरामिड आकार का विमान (शिखर के स्थान पर) है। तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर प्रमुख उदाहरण।

मामल्ल शैली (पल्लव शैली)

नरसिंह वर्मन द्वारा विकसित। महाबलिपुरम के पंचरथ मंदिर इसके विशिष्ट उदाहरण हैं, ये एकाश्म मंदिर हैं (एक ही पत्थर को काटकर निर्मित)।

बेसर शैली

नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रित रूप। बादामी के चालुक्य शासकों ने विकसित की।

नृत्य कला

नटराज

भगवान शिव को नृत्य का स्वामी माना जाता है। उनकी मूर्तियाँ तांडव नृत्य करते हुए, एक छोटे बौने अपस्मारा (बुराइयों का प्रतीक) के ऊपर नृत्य करते हुए दिखाई गई हैं।

नाट्य शास्त्र

भरतमुनि द्वारा रचित, नृत्य कला का व्यवस्थित अध्ययन मिलता है। इसे पाँचवाँ वेद माना जाता है।

भरतनाट्यम

तमिलनाडु का सबसे प्राचीन नृत्य, 2000 वर्ष से अधिक पुराना। इसे प्राचीन भारत में सादिर के नाम से भी जाना जाता था। इसमें कर्नाटक गायन शैली का उपयोग होता है।

कुचिपुड़ी

आंध्र प्रदेश का नृत्य। नर्तकी सिर पर कलश और पैरों को थाली के किनारों पर रखकर नृत्य करती है, जिसे तरंगम कहते हैं।

कथकली

केरल का पुरुष प्रधान नृत्य। नायक चरित्र (पाचा) के चेहरे का रंग हरा, खलनायक (ताटी) का लाल होता है।

मोहिनीअट्टम

केरल का एकल नृत्य। इसे गरीबों की कथकली भी कहा जाता है।

कत्थक

उत्तर प्रदेश का नृत्य। अवध के नवाब वाजिद अली शाह द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

सतरिया

असम का नृत्य। वैष्णव धर्म के प्रचार के उद्देश्य से शुरू हुआ। संगीत नाटक अकादमी द्वारा 2000 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा मिला।

चित्रकला

मधुबनी (मिथिला)

बिहार की चित्रकला। रामायण काल से जुड़ी हुई, जब मिथिला के राजा ने सीता-राम विवाह पर प्रजा को दीवारों पर चित्र बनाने को कहा था।

बणी-ठणी (किशनगढ़)

राजा सावंत सिंह ने विकसित की। उन्होंने अपनी दासी को राधा के रूप में चित्रित किया, जिसे बणी-ठणी नाम दिया।

मुगल लघु चित्रकला

जहाँगीर के शासनकाल में शीर्ष पर पहुँची। भारतीय और फ़ारसी चित्रकला का बेहतरीन नमूना है।