जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में संदेशों का
आदान प्रदान करना चाहते हैं, तो एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है जिसके माध्यम से
वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें.
ठीक इसी प्रकार, जब
यूजर और कम्प्यूटर (मशीन) के बीच संचार करना हो तो, एक
ऐसी लैंग्वेज की आवश्यकता होती है, जिसके माध्यम से यूजर मशीन को इन्फार्मेशन दे
सके और मशीन यूजर को रिस्पोंस दे सके. यूजर और मशीन के बीच प्रयोग की जाने वाली
लैंग्वेज को कम्प्यूटर लैंग्वेज कहते हैं.
मशीन लैंग्वेज और कम्प्यूटर
लैंग्वेज में क्या अन्तर है
कंप्यूटर लैंग्वेज एक व्यापक शब्द है जिसमें
मशीन लैंग्वेज, असेंबली लैंग्वेज और पाईथन या जावा जैसी हाई
लेवल लैंग्वेज शामिल हैं, जबकि मशीन लैंग्वेज बायनरी लैंग्वेज है.
मशीन लैंग्वेज
मशीन लैंग्वेज को लो लेवल लैंग्वेज या मशीन कोड भी
कहते है. इसमें बायनरी डिजिट (बिट - 0 और 1) होती है. 0 फाल्स स्टेट को 1 ट्रू
स्टेट को दर्शाता है.
सीपीयू बाइनरी लैंग्वेज के निर्देशों को सीधे
समझ सकता है, इसके लिए इसे किसी ट्रांसलेटर की आवश्यकता नहीं
होती है.
सीपीयू बाइनरी लैंग्वेज के निर्देशों को सीधे
एक्जीक्यूट करना शुरू कर देता है. इस लैंग्वेज
के निर्देशों को एक्जीक्यूट करने में समय कम लगता है क्योंकि इसके लिए किसी
अनुवादक की आवश्यकता नहीं होती है. लो
लेवल लैंग्वेज को पहली पीढ़ी की लैंग्वेज माना जाता है.
आधुनिक बाइनरी लैंग्वेज के विकास का श्रेय
गॉटफ्रीड विल्हेम लाइबनिज़ को दिया जाता है, जिन्होंने
1689 में इसका विकास किया. जॉर्ज बूले ने 1854
में, "बुलियन अलजेब्रा विकसित किया, जो
आधुनिक बाइनरी सिस्टम, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के विकास में
मौलिक था.
असेंबली लैंग्वेज
असेंबली लैंग्वेज एक लो लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज
(या मिडिल लेवल लैंग्वेज) है, जो बाइनरी मशीन कोड को छोटे शब्दों और प्रतीकों का
उपयोग करके ह्यूमन रीडेबल बना देती है.
यह सीधे हार्डवेयर को नियंत्रित करने की अनुमति
देती है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि यह प्रोसेसर स्पेसिफिक
होती है यानि एक प्रोसेसर के लिए बनायी गयी असेंबली लैंग्वेज दूसरे प्रोससर पर काम
नहीं करती है.
बाइनरी मशीन कोड की जगह स्मृति सहायक कोड (mnemonics), शॉर्ट-हैंड
और सिम्बल्स का उपयोग करती है, जिससे इसे समझना आसान होता है. इसलिए इसे सिम्बोलिक मशीन लैंग्वेज भी कहते हैं.
असेंबली लैंग्वेज के उदाहरणों में MOV, ADD, SUB जैसे
निमोनिक्स (संक्षिप्त रूप) का प्रयोग किया जाता है. जिनका उपयोग रजिस्टरों (जैसे AL, AX) में
डेटा ट्रांसफर करने या ALU ओपरेट करने के लिए किया जाता है.
असेंबली लैंग्वेज को असेंबलर नामक प्रोग्राम
द्वारा मशीन कोड में बदला जाता है.
हाई लेवल लैंग्वेज
कम्प्यूटर प्रोग्राम्स को प्रोग्रामर द्वारा हाई
लेवल लैंग्वेज में लिखा जाता है. हाई लेवल लैंग्वेज के सिंटेक्स बहुत ही आसान होते
है और इन्हें आसानी से समझा जा सकता है.
हाई लेवल लैंग्वेज में फॉरट्रांन, कोबोल, बेसिक,
पर्ल, पास्कल, जावा, पाईथन, सी और सी++, जैसी लैंग्वेज आती हैं. ये इंग्लिश लैंग्वेज की
तरह होते है. इन्हें प्रोग्रामिंग लैंग्वेज भी कहा जाता है. फॉरट्रांन सबसे पहली
हाई लेवल लैंग्वेज है.
परन्तु सी पी यू हाई लेवल लैंग्वेज में बनाये
प्रोग्राम्स या सोर्स कोड को नही समझ पता है. इसलिए हाई लेवल लैंग्वेज के प्रोग्राम्स
सी पी यू के पास भेजने से पहले मशीन लैंग्वेज में
बदलने की आवश्यकता होती है. हाई लेवल लैंग्वेज को मशीन लैंग्वेज में बदलने के लिए कम्पाईलर या इंटरप्रेटर का प्रयोग
किया जाता है.
कंपाइलर और इंटरप्रेटर
कंपाइलर और इंटरप्रेटर दोनों ही उच्च-स्तरीय
प्रोग्रामिंग भाषाओं को मशीन कोड में बदलते हैं, लेकिन
कंपाइलर पूरे प्रोग्राम को एक साथ बदलता है जबकि इंटरप्रेटर कोड को लाइन-दर-लाइन
(एक-एक करके) बदलता है.
इस कारण, कंपाइल
किए गए प्रोग्राम अक्सर तेज़ी से चलते हैं, जबकि
इंटरप्रेटर में डिबग करना आसान होता है क्योंकि यह किसी त्रुटि पर तुरंत रुक जाता
है.
C, C++, और Fortran जैसी
भाषाएँ कंपाइलर का उपयोग करती हैं.
प्रमुख हाई लेवल लैंग्वेज
फोरट्रान
फोरट्रान पहली प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है. फोरट्रान का निर्माण आईबीएम टीम के सदस्यों
द्वारा 1954 में किया गया, इसे पहली बार 15 अक्टूबर, 1956
को लांच किया गया.
अल्गोल
इसका पूरा नाम एलगोरिदिमिक लैंगवेज है. इसका आविष्कार मुख्यतः जटिल बीजगणित गणनाओं हेतु
किया जाता है.
इस लैंग्वेज का प्रयोग इन्जीनियरिंग और
वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है. इस लैंग्वेज
का विकास सन् 1958 इन्टरनेशनल कम्पनी ने किया था.
कोबॉल
इसका पूरा नाम कॉमन बिजिनेस ओरिएन्टेड लैंगवेज
है. इसका प्रयोग कामर्शियल एप्लीकेशन
प्रोग्राम लिखने के लिये प्रयोग में लिया जाता है.
लोगो
इसका पूरा नाम लॉजिक ओरिएन्टेड लैंगवेज है. इस लैंग्वेज का प्रयोग बच्चों के लिए प्रयोग
किया गया है.
बेसिक
इसका पूरा नाम बीगनर्स ऑल परपज सिम्बोलिक
इंस्ट्रक्शन कोड है. इसका प्रयोग हर
प्रकार के कम्प्यूटर के लिए होता है.
इसका विकास सन् 1964 में डार्ट माडल कॉलेज
अमेरिका के पामस कुर्टज तथा डॉ जॉन केमेनी ने किया था.
प्रोलॉग
इसका पूरा नाम प्रोग्रामिंग लॉजिक है.
इस लैंग्वेज का विकास 1973 ई. में फ्रांस में
आटिफिसियल इंटेलीजेंस से सम्बन्धित कार्यों को करने के लिए किया गया था.
सी
यह
प्रोग्रामिंग की सबसे आधुनिक लैंग्वेज है. जिसका विकास ए एण्ड टी लैब में डेनिस, टिची
ने सन् 1972 में किया था.
इस लैंग्वेज का प्रयोग करके जटिल से जटिल
प्रोग्राम का सरल लैंग्वेज में लिखने के लिए किया जाता है.
C++
इसका विकास 1980 में बार्न्न स्ट्रास्ट्राय
द्वारा अमेरिका की बेल लबोरेटरी में हुआ था यह एक आब्जेक्ट ओरिऐन्टेड प्रोग्रामिंग
लैंगवेज है.
जिसका प्रयोग यूजर इन्टरफेस पर आधारित प्रोग्राम
को लिखने के लिए किया जाता हैं.
इसका उपयोग गेम डेवलपमेंट और सिस्टम
प्रोग्रामिंग में की जाती है.
जावा
इसे मूल रूप से ओक के रूप में जाना जाता है, जावा
एक प्रोग्रामिंग लैंगवेज है, जिसे जेम्स गॉस्लिंग और अन्य ने सन
माइक्रोसिस्टम्स में विकसित किया है.
इसे पहली बार 1995 में जनता के लिए पेश किया गया
था और इसका उपयोग वेब डवलपमेंट, इंटरनेट एप्लीकेशन और अन्य सॉफ्टवेयर प्रोग्राम
बनाने के लिए किया जाता है. वर्तमान में
जावा को ओरेकल द्वारा डेवलप किया जा रहा है.
पास्कल
यह 1971 में निकोलस वर्थ द्वारा विकसित
उच्च-स्तरीय प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है, जिसका
नाम महान गणितज्ञ ब्लेज पास्कल के नाम पर रखा गया है.
पर्ल (प्रैक्टिकल एक्सट्रैक्शन और
रिपोर्टिंग लैंग्वेज)
पर्ल 1987 में लैरी वॉल द्वारा विकसित पहली, एक
आपन सोर्स प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है.
यह सी लैंग्वेज की संरचना में बहुत समान है.
पर्ल सीजीआई स्क्रिप्ट लिखने और इंटरनेट और वेब
पेज अनुप्रयोगों के लिए प्रोग्रामिंग में अधिक इस्तेमाल की जाने वाली लैंग्वेजेज में
से एक है.
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