Powered By Blogger

Friday, September 19, 2025

भारतीय चिंतन परम्पराओं का विकास

 

"भारतीय चिंतन परम्पराओं का विकास वेदों, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद और दर्शन पर आधारित है। आस्तिक और नास्तिक दर्शन, षड्दर्शन, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत तथा बौद्ध, जैन व चार्वाक दर्शन की विशेषताओं को जानिए। भारतीय दर्शन के मूल प्रश्न – परमसत्य क्या है और जीव-जगत-ईश्वर का सम्बन्ध क्या है – की गहराई को विस्तार से समझें।"



भारतीय चिंतन परम्पराओं का विकास


भारतीय सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता उसकी चिंतन परम्पराएँ रही हैं। भारत में ज्ञान का जो विशाल भंडार विकसित हुआ, उसकी जड़ें वेदों में मिलती हैं।


वेद : ज्ञान का शाश्वत स्रोत

  • वेद शब्द → "विद्" धातु से बना है, जिसका अर्थ है ज्ञान या जानना

  • जो व्यक्ति विद् है अर्थात ज्ञानी है, वही विद्वान कहलाता है।

  • संकलनकर्ता → कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास)।

  • वेदत्रयी → ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद।

  • वेद अपौरूषेय माने जाते हैं → इनमें कही गई बातें किसी मानव की कल्पना नहीं, बल्कि शाश्वत सत्य का ज्ञान है।

👉 उदाहरण: "सूर्य पूर्व से निकलता है" – यह किसी के दिमाग की उपज नहीं, बल्कि शाश्वत सत्य है।


वेदांग : वेदों को समझने की चाबी

क्लिष्ट वेदों को समझने के लिए 6 वेदांगों का विकास हुआ –

  1. शिक्षा

  2. व्याकरण

  3. छन्द

  4. निरुक्त

  5. कल्प

  6. ज्योतिष

इनके बाद वेदों की भाषा को सरल बनाने का प्रयास शुरू हुआ।


ब्राह्मण साहित्य का विकास

  • वेदों की व्याख्या को सुगम भाषा में प्रस्तुत किया गया।

  • प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ –

    • ऋग्वेद → ऐतरेय, कौषीतकी

    • सामवेद → पंचविश, छान्दोग्य, षण्विश, जैमिनीय

    • यजुर्वेद → तैत्तिरीय, शतपथ

    • अथर्ववेद → गोपथ

👉 इन ग्रंथों में सृष्टि, यज्ञ और प्रकृति के रहस्यों की व्याख्या की गई।


भारतीय ऋषियों के प्रश्न

वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों के अध्ययन के बाद ऋषियों के सामने कई प्रश्न खड़े हुए –

  • क्या इस सम्पूर्ण जगत की कोई रचना करने वाला है?

  • यदि हाँ, तो उसका स्वरूप और मंशा क्या है?

  • जीव, जगत और सृष्टिकर्ता का आपसी सम्बन्ध क्या है?

  • क्या यह जगत केवल एक संयोग है?

  • परमसत्य (Absolute Reality) क्या है?

👉 इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने की प्रक्रिया में आरण्यक और उपनिषद अस्तित्व में आए।


भारतीय दर्शन परम्पराएँ

भारतीय चिंतन की परिणति विभिन्न दर्शन परम्पराओं के रूप में हुई।

आस्तिक दर्शन (षड्दर्शन)

वेदों को प्रमाण मानने वाले 6 दर्शन:

  1. सांख्य दर्शन – कपिल मुनि

  2. योग दर्शन – पतंजलि

  3. वैशेषिक दर्शन – कणाद (उल्का)

  4. न्याय दर्शन – गौतम

  5. पूर्व मीमांसा – जैमिनी

  6. उत्तर मीमांसा (वेदांत) – बादरायण

👉 ये मानते हैं कि वेदों में वर्णित ज्ञान शाश्वत और सत्य है।


नास्तिक दर्शन

वेदों की सर्वोच्चता को न मानने वाले दर्शन:

  1. चार्वाक दर्शन

  2. बौद्ध दर्शन

  3. जैन दर्शन

👉 ये मानते हैं कि वेदों में लिखी बातों को भी परीक्षण और तर्क के कसौटी पर कसना चाहिए।


ईश्वर की सत्ता पर दृष्टिकोण

  • सांख्य, मीमांसा, बौद्ध, जैन और चार्वाक दर्शन → अनीश्वरवादी (ईश्वर को नहीं मानते)।

  • अन्य दर्शन ईश्वर या परमब्रह्म की सत्ता को स्वीकारते हैं।


निष्कर्ष

भारतीय चिंतन परम्पराओं का विकास केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह दार्शनिक खोज का परिणाम है।

  • वेदों से शुरू होकर ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद तक, और फिर दर्शन परम्पराओं तक – यह यात्रा भारतीय मनीषा की गहराई को दर्शाती है।

  • परमसत्य क्या है? – यह प्रश्न ही भारतीय दर्शन की आत्मा है।


✅ इस प्रकार भारतीय चिंतन परम्पराओं ने न केवल आध्यात्मिकता और दर्शन को जन्म दिया बल्कि मनुष्य के जीवन, जगत और ईश्वर के बीच सम्बन्ध को भी समझने का आधार प्रदान किया।


👉 यह ब्लॉग विद्यार्थियों, शोधार्थियों और भारतीय संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए ज्ञान का समृद्ध स्रोत है।