कैबिनेट मिशन
द्वितीय विश्व युद्व समाप्त हो गया, विंस्टन चर्चिल के नेतृृत्व में ब्रिटेन युद्ध जीत चुका था, लेकिन विंस्टन चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी चुनाव हार गई। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के क्लीमेंट एटली नये प्रधानमंत्री बने।
लेबर पार्टी भारत की स्वतंत्रता के समर्थन में थी, इसलिए 16 मई 1946 में भारत में सत्ता हस्तांन्तरण की संभावनाओं का पता लगाने के लिए ब्रिटिश मत्रीमंडल के तीन मंत्रियों का एक दल जिसमें - लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव), सर स्टेफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष) तथा ए.वी. अलेक्जेंडर (एडमिरैलिटी के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री) शामिल थे, भारत आया।
सभी राजनीतिक दलों से चर्चा करने के बाद कैबिनेट मिशन ने एक प्लान प्रस्तुत किया जिसे कैबिनेट मिशन प्लान कहा जाता है। इसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
भारत एक संघ होगा, जिसमें देशी राज्य व ब्रिटिश भारत के प्रान्त सम्मिलित होंगे। यह संघ वैदेशिक, रक्षा तथा यातायात विभागों की व्यवस्था करेगा।
पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार करते हुए, एक जटिल त्रिस्तरीय संघ बनाने का प्रस्ताव किया गया, जिसमें पहले स्तर पर एक कमजोर संघ जिसे केवल वित्त, सुरक्षा तथा विदेश मामलों की जिम्मेदारी दी गई। दूसरे स्तर पर प्रान्तों के तीन समूह का प्राविधान था, जिसमें समूह ए में मद्रास, बॉम्बे, सेंट्रल प्रोविंस, ओडिसा बिहार को रखा गया। समूह बी में सिंध, पंजाब, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और बलूचिस्तान को रखा गया तथा समूह सी में असम और बंगाल को रखा गया।
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार प्रत्येक प्रान्त को अपना खुद का संविधान बनाने का प्राविधान लाया गया। प्रान्तों के प्रत्येक समूह को अपने समूह का संविधान बनाने का प्राविधान था तथा सभी समूह मिलकर भारत का सविंधान बनायेगे।
प्रांतो को पांच वर्ष के बाद अपना समूह बदलने तथा 10 वर्ष बाद समूह का संविधान को बदलने का अधिकार दिया गया।
देशी रियासतों को संघ में शामिल होने या न होने की पूरी स्वतंत्रता दी गई। यदि वेे संघ में शामिल होते हैं तो उन्हें संघ की शक्तियों को छोड़कर शेष सभी विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया।
योजना अनुसार संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों (दिल्ली, अजमेर -मारवाड़, कुर्ग तथा बलुचिस्तान) के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल थे।
योजना में 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि का प्राविधान किया गया था।
14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी। जुलाई 1946 में संविधान सभा के 296 सदस्यों का निर्वाचन सम्बन्धित प्रान्त के विधान सभा सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया गया।
इसमें कांग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 एवं अन्य दलों तथा निर्दलीय 15 उम्मीदवार संविधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए।
इनमें 15 महिला सदस्य भी निर्वाचित हुई। चुनाव में अपनी बुरी हार के बाद जुलाई में मुस्लिम लीग ने कैैबिनेट मिशन प्लान को अस्वीकार कर दिया।
देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन हुआ। भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 299 रह गयी, जिसमें 229 प्रतिनिधि ब्रिटिश प्रांतों से एवं 70 प्रतिनिधि देशी रियासतों से थे।

