भाग 8: गुप्त
साम्राज्य
|
शासक/विवरण |
मुख्य उपलब्धियाँ और तथ्य |
|
श्री गुप्त |
गुप्त वंश का संस्थापक (273 ई.पू.)। |
|
चंद्रगुप्त
प्रथम (319–335 ई.) |
गुप्त
संवत (319–20 ई.) का प्रवर्तक। उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। |
|
समुद्रगुप्त (335–375 ई.) |
गुप्त
साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक और विस्तारक। उसे 'भारत का नेपोलियन' कहा जाता था। उपाधियाँ: पक्रमांक और कविराज। वह
वीणावादन में प्रवीण था। उसके दरबारी कवि हरिषेण ने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की। |
|
चंद्रगुप्त द्वितीय
(विक्रमादित्य)
(375–415 ई.) |
उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। चीनी
यात्री फाह्यान उसके शासनकाल में भारत आया। उसने उज्जयिनी को अपनी राजधानी
बनाया। |
|
नवरत्न |
उसके
दरबार में नवरत्न थे: कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतलम्, रघुवंश), वराहमिहिर (खगोलशास्त्री, पंच सिद्धांत, बृहत्संहिता), धन्वंतरि (आयुर्वेद/चिकित्सा) और अमरसिंह (अमरकोश) प्रमुख थे। |
|
कुमारगुप्त प्रथम (415–455 ई.) |
उसने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की। उसके शासनकाल में हूणों का आक्रमण प्रारंभ हुआ। |
|
प्रशासन/अर्थव्यवस्था |
गुप्त
काल को भारतीय सामंतवाद के उदय का काल माना जाता है। भूमि कर (उत्पादन का 1/6) को उद्रंग या भागकर कहा गया है। |

