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Sunday, November 9, 2025

महिला विश्वकप 2025 : भारत का ऐतिहासिक स्वर्ण अध्याय


महिला विश्वकप 2025 : भारत का ऐतिहासिक स्वर्ण अध्याय

भारतीय क्रिकेट इतिहास में वर्ष 2025 सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
क्योंकि इसी वर्ष भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार आईसीसी महिला विश्वकप का खिताब अपने नाम किया — वह भी अपने ही देश की धरती पर।
यह जीत न केवल खेल का विजय-क्षण थी, बल्कि भारतीय महिला सशक्तिकरण, आत्मबल और संघर्ष की विजय गाथा भी थी।

🏆 टूर्नामेंट का संक्षिप्त विवरण

विवरणजानकारी
टूर्नामेंटआईसीसी महिला वनडे विश्व कप 2025
अवधि30 सितंबर 2025 – 2 नवंबर 2025
मेजबान देशभारत एवं श्रीलंका
भाग लेने वाली टीमें8
फाइनल मुकाबलाभारत बनाम दक्षिण अफ्रीका
विजेताभारत
उपविजेतादक्षिण अफ्रीका
स्थानमुंबई (फाइनल मैच – वानखेड़े स्टेडियम)

🏏 भारत का प्रदर्शन : संघर्ष से शिखर तक

भारतीय महिला टीम ने इस टूर्नामेंट की शुरुआत जोश और आत्मविश्वास से की।
ग्रुप-स्टेज में टीम ने 7 में से 6 मैच जीतकर शीर्ष स्थान प्राप्त किया।
एकमात्र हार इंग्लैंड के खिलाफ रही, जिसने टीम को अपनी रणनीति और संयोजन पर पुनर्विचार करने का अवसर दिया।

प्रमुख क्षण :

  1. स्मृति मंधाना ने पाकिस्तान के विरुद्ध 134 रनों की विस्फोटक पारी खेली।

  2. दीप्ति शर्मा ने गेंदबाज़ी में कमाल करते हुए टूर्नामेंट में सर्वाधिक 22 विकेट हासिल किए।

  3. हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में टीम ने अनुशासन, आत्मविश्वास और एकता का उदाहरण प्रस्तुत किया।

⚔️ फाइनल मुकाबला : गौरव का क्षण

फाइनल मैच भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका के बीच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया।
दक्षिण अफ्रीका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में 228 रन बनाए।
भारत ने लक्ष्य का पीछा करते हुए 48.2 ओवर में 229 रन बना डाले।

  • स्मृति मंधाना (79 रन, 93 गेंदों पर)

  • शेफाली वर्मा (45 रन)

  • और अंत में दीप्ति शर्मा (नाबाद 34 रन + 3 विकेट) ने जीत सुनिश्चित की।

भारत ने 6 विकेट से ऐतिहासिक विजय प्राप्त की और पहली बार विश्वविजेता बना।
भीड़ “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम्” के नारों से गूंज उठी।

🌟 मुख्य नायक (Key Players)

खिलाड़ीप्रदर्शनविशेषता
स्मृति मंधाना520 रनटूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़
दीप्ति शर्मा22 विकेटसर्वाधिक विकेट लेने वाली खिलाड़ी
हरमनप्रीत कौर310 रन + शानदार कप्तानीप्रेरणादायी नेतृत्व
रेणुका सिंह ठाकुर18 विकेटशुरुआती ओवरों में ब्रेकथ्रू
रिचा घोष200 रन, तेज फिनिशिंगयुवा ऊर्जा का प्रतीक

💪 भारत की जीत का महत्व : एक गहरा दृष्टिकोण

  1. ऐतिहासिक उपलब्धि:
    यह भारत का पहला महिला वनडे विश्व कप खिताब है — जो पुरुष टीम की 1983 की ऐतिहासिक जीत की याद ताज़ा करता है।

  2. महिला सशक्तिकरण का प्रतीक:
    इस जीत ने देश की लाखों बेटियों को यह संदेश दिया कि परिश्रम, लगन और आत्मविश्वास से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

  3. खेल अधोसंरचना में सुधार:
    इस टूर्नामेंट के आयोजन से भारत में महिला क्रिकेट की सुविधाओं, प्रायोजन और प्रसारण में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

  4. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
    महिला खिलाड़ियों के लिए विज्ञापन, लीग अवसर और सरकारी सम्मान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

  5. राष्ट्रीय गौरव का क्षण:
    2025 की यह जीत भारत के खेल इतिहास में “नारी शक्ति” के उत्कर्ष का प्रतीक बन गई।

📣 जनभावना और मीडिया प्रतिक्रिया

फाइनल के बाद सोशल मीडिया पर #WomenInBlue, #ChampionIndia, #VandeMataram जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सभी प्रमुख हस्तियों ने खिलाड़ियों को बधाई दी।
लोगों ने इसे “नई भारत की बेटियों की विजय” कहा।

🏅 निष्कर्ष : स्वर्णिम युग की शुरुआत

महिला विश्वकप 2025 ने भारतीय खेल जगत को नई दिशा दी।
यह केवल एक खेल जीत नहीं थी, बल्कि एक मानसिक क्रांति थी —
जिसने यह सिद्ध किया कि भारतीय नारी अब किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं।

💬 “ये जीत भारत की नहीं, हर उस बेटी की है जिसने सपने देखने की हिम्मत की।”

✍️ लेखक: Rudra’s IAS Team
📍 पता: 137, Zone 2, MP Nagar, Bhopal
📞 संपर्क: 9098200428
🌐 Blog Page: www.rudrasiasblogs.com
📸 Instagram: @rudras_ias

सन्यासी विद्रोह (Sanyasi Rebellion) – ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध प्रथम जन-विद्रोह

 

सन्यासी विद्रोह (Sanyasi Rebellion) – ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध प्रथम जन-विद्रोह

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास केवल 1857 से नहीं शुरू होता — इसकी जड़ें उससे कहीं गहरी हैं। इन्हीं आरंभिक संघर्षों में से एक था “सन्यासी विद्रोह”, जिसने अंग्रेज़ों के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ बंगाल की भूमि पर सबसे पहले विद्रोह की चिंगारी भड़काई।


🕉️ पृष्ठभूमि

सन्यासी विद्रोह का आरंभ अठारहवीं शताब्दी में बंगाल क्षेत्र में हुआ।
1764 में बक्सर युद्ध के बाद बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को प्राप्त हो गए। इसके बाद कंपनी ने स्थानीय जनता पर कठोर कर नीति लागू कर दी।
इससे किसान, जमींदार और साधु-सन्यासी — सभी वर्गों में असंतोष फैल गया।

1770 में आई भयंकर बंगाल की अकाल (Bengal Famine) ने स्थिति को और विकट बना दिया।
अकाल के समय जब लोग भूख से मर रहे थे, तब भी अंग्रेज़ अधिकारी कर वसूलते रहे।
सन्यासियों, जो प्रायः देशभर के मंदिरों और तीर्थों से चंदा लेकर यात्रा करते थे, को भी जबरन टैक्स देना पड़ता था।
इसी अत्याचार ने इस विद्रोह को जन्म दिया।


🔥 विद्रोह की शुरुआत

इस आंदोलन का नेतृत्व धार्मिक साधुओं और संन्यासियों ने किया, जिनमें प्रमुख रूप से आनंद गिरि, भवानंद पांडे, और कई स्थानीय महंत शामिल थे।
इन सन्यासियों ने अंग्रेज़ चौकियों और राजस्व कार्यालयों पर आक्रमण किए।
उनका उद्देश्य केवल धन नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के अन्याय का विरोध था।

सन्यासी दलों ने अंग्रेज़ी हुकूमत की कर वसूली की चौकियों को नष्ट किया और ज़ुल्म करने वाले ज़मींदारों को दंडित किया।
इसमें स्थानीय किसान और आम जनता भी उनके साथ शामिल हो गई, जिससे यह आंदोलन एक जन-विद्रोह का रूप ले लिया।


⚔️ अंग्रेज़ी दमन

ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को बड़ी गंभीरता से लिया।
जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने कठोर दमन की नीति अपनाई।
सन्यासियों को "लुटेरे" घोषित किया गया और कई को मृत्युदंड दिया गया।

लेकिन अत्याचारों के बावजूद यह विद्रोह लगभग 1763 से 1800 तक कई दशकों तक चलता रहा — जिससे यह भारत का सबसे दीर्घकालिक प्रतिरोध आंदोलन माना जाता है।


🪶 साहित्यिक छवि – ‘आनंदमठ’

इस विद्रोह की गूंज केवल इतिहास तक सीमित नहीं रही।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) में इसी विद्रोह की पृष्ठभूमि को आधार बनाया।
यही वह उपन्यास था, जिसमें भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” पहली बार प्रस्तुत हुआ।

इस उपन्यास के माध्यम से बंकिमचंद्र ने यह दर्शाया कि कैसे धार्मिक और राष्ट्रभक्ति भावनाएँ मिलकर मातृभूमि की रक्षा का प्रतीक बनती हैं।


📜 महत्व

  • यह भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहला संगठित सशस्त्र आंदोलन था।

  • इसने भविष्य में होने वाले किसान आंदोलनों और 1857 की क्रांति के लिए प्रेरणा का कार्य किया।

  • इस विद्रोह ने यह सिद्ध कर दिया कि भारतवासी विदेशी शासन के अन्याय के विरुद्ध एकजुट होकर खड़े हो सकते हैं।


🇮🇳 निष्कर्ष

सन्यासी विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वह पहली लौ थी, जिसने ब्रिटिश सत्ता की नींव को हिला दिया।
यह केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि भारत की आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का आरंभ था।
“वंदे मातरम्” की भावना इसी चेतना की परिणति थी, जो आगे चलकर पूरे राष्ट्र की प्रेरणा बन गई।


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🌺 वंदे मातरम् : मातृभूमि के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक 🌺

 


वंदे मातरम्” — यह मात्र एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की धड़कन है। यह वह स्वर है, जिसने आज़ादी के आंदोलन में लाखों भारतीयों के हृदय में मातृभूमि के लिए प्रेम, गर्व और बलिदान की भावना को जागृत किया। भारत का राष्ट्रीय गीत कहलाने वाला “वंदे मातरम्” हमारे राष्ट्र की अस्मिता, संस्कृति और शक्ति का अमर प्रतीक है।

✍️ रचना और प्रेरणा

इस अमर गीत की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) ने की थी। सन् 1870 के दशक में अंग्रेज़ शासकों ने सरकारी आयोजनों में ‘God Save the Queen’ गीत गाना अनिवार्य कर दिया था।
यह आदेश भारतीयों की आत्मा को गहराई से चोट पहुँचा गया — क्योंकि इसमें राष्ट्र के गौरव का नहीं, दासता का भाव था।
बंकिमचंद्र, जो उस समय एक सरकारी अधिकारी थे, इस अन्याय से व्यथित हो उठे। उन्होंने अंग्रेज़ी प्रभुत्व के इस प्रतीक के विकल्प के रूप में एक ऐसा गीत रचा जो भारत माता के प्रति सम्मान और प्रेम से ओत-प्रोत था — और उसका नाम रखा वंदे मातरम्” अर्थात् “माता, मैं तेरा वंदन करता हूँ।”

🪶 भाषा और स्वरूप

यह गीत संस्कृत और बांग्ला — दोनों भाषाओं के मिश्रण से रचा गया था।

  • प्रथम दो पदसंस्कृत में
  • शेष पदबांग्ला भाषा में लिखे गए।

गीत में भारत माता को “सुजलाम् सुफलाम्”, “शस्य-श्यामलाम्” कहकर उनके प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्धि का वर्णन किया गया है।
राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Tagore) ने इसे संगीतबद्ध किया और 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इसे पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया।

🌏 अनुवाद और वैश्विक पहचान

वंदे मातरम् की शक्ति और सौंदर्य ने इसे सीमाओं से परे प्रसिद्धि दिलाई।

  • अरबिंदो घोष (Sri Aurobindo) ने इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।
  • आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने उर्दू में अनुवाद किया।

यह गीत केवल भारतीयों के हृदय में ही नहीं, बल्कि विश्व में भी अपनी छाप छोड़ गया।
सन् 2002 में बी.बी.सी. के एक वैश्विक सर्वेक्षण में “वंदे मातरम्” को दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत घोषित किया गया। आयरिश समूह द वोल्फ टोन्स का गाना "ए नेशन वन्स अगेन" दुनिया का सबसे लोकप्रिय गीत है।

 🎶 गीत के पावन शब्द

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरम्।
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम्॥

कोटि कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले,
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले।
के बोले मा तुमी अबले,
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीम् मातरम्॥

तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे।
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे॥

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदल विहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी नमामि त्वाम्।
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्॥

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्॥

वंदे मातरम् का ऐतिहासिक महत्व

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान “वंदे मातरम्” केवल एक गीत नहीं रहा — यह क्रांतिकारियों का नारा, जनआंदोलन का प्रतीक, और स्वाभिमान की गूंज बन गया।
वंदे मातरम्” के उदघोष से भारत माता के सपूतों में बल, जोश और आत्मबल की भावना जागृत होती थी।
यह गीत आज भी हर भारतीय के लिए श्रद्धा और गर्व का प्रतीक है।

🌿 निष्कर्ष

वंदे मातरम्” भारत की संस्कृति, शक्ति, भक्ति और मातृप्रेम का सार है।
यह हमें याद दिलाता है कि भारत केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक जीवंत माता है, जो अपने संतानों की रक्षा करती है और उन्हें ज्ञान, ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करती है।
हर भारतीय के हृदय से आज भी यही स्वर गूंजता है —

💖 वंदे मातरम्! जय भारत माता! 💖

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Tuesday, November 4, 2025

क्लोनिंग | सोमेटिक सेल (सोमैटिक न्यूक्लीयर ट्रांसफर टेक्नोलॉजी)

 


क्लोनिंग

Ø क्लोनिंग द्वारा किसी कोशिका, कोई अन्य जीवित हिस्सा या एक संपूर्ण जीव के शुद्ध प्रतिरूप (रेप्लिका) का निर्माण होता है।

Ø सर्वप्रथम 1996 में इस तकनीक का प्रयोगकर डॉली नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया था। क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से अलैंगिक विधि (असेक्सुअल) द्वारा उत्पन्न होता है।

Ø उत्पादित ‘क्लोन‘ अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णतः समरूप होता है। प्रयोगशाला में किसी जीव के शुद्ध प्रतिरूप सोमेटिक सेल न्यूक्लीयर ट्रांसफर द्वारा तैयार किया जाता है.

सोमेटिक सेल (सोमैटिक न्यूक्लीयर ट्रांसफर टेक्नोलॉजी)

Ø इस प्रक्रिया में कायिक कोशिका (सोमैटिक सेल) जिसमे 23 पेयर (46 क्रोमोसोम) होते हैं, को उस पर्टिकुलर जीव के शरीर से लेकर उसके न्यूक्लीअस को अलग कर लिया जाता है।

Ø फिर उसी पर्टिकुलर जीव की प्रजनन कोशिका (रिप्रोडक्टिव सेल) यानी फिमेल के केस में ओवम और मेल के केस में स्पर्म से न्यूक्लीअस को बाहर करके सेल को न्यूक्लीअसलेस बना दिया जाता है.

Ø इसके बाद “सोमैटिक सेल के न्यूक्लीअस” को “न्यूक्लीअसलेस रिप्रोडक्टिव सेल” में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है. इसे सोमैटिक न्यूक्लीयर ट्रांसफर कहते हैं.

Ø इससे रिप्रोडक्टिव सेल में 23 पेयर (46 क्रोमोसोम) आ जाते हैं और रिप्रोडक्टिव सेल जायगोट बन जाता है. फर्टिलाइजेशन आरम्भ करने के लिए विद्युत तरंगों का प्रयोग किया जाता है. जिससे कोशिका विभाजन शुरू हो जाता है. इसे टेस्ट ट्यूब में डवलप करके किसी महिला की ओवरी में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है. जहाँ एम्ब्रियो सामान्य रूप से विकसित होता है.

Ø हालांकि अभी तक किसी मानव का क्लोन अब तक तैयार नहीं किया गया है.

इतिहास

Ø 1996 में सर्वप्रथम इस तकनीक का प्रयोगकर डॉ इयान विल्मुटऔर उनके सहयोगियों ने डॉली नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया. 2009 में करनाल के वैज्ञानिकों ने भैंस के प्रथम क्लोन ‘समरूपा’ और उसके बाद ‘गरिमा’ को विकसित किया. 2013 में क्लोन भैंस ‘गरिमा II’ ने ‘महिमा’ को जन्म दिया था।

Ø 2009 में दुबई के ऊंट प्रजनन केन्द्र में ‘इनजाज’ नामक प्रथम दुनिया की मादा ऊंट क्लोन को विकसित किया.

 

Ø     पाठकों से एक मार्मिक अपील

Ø अगर हमारे ब्लॉग में दी गयी जानकारियां उपयोगी लगती हों, तो कृपया हमें फॉलो करेंताकि हमें प्रोत्साहन मिलेहम भी गर्व से कह सकें कि हमारे पास एक बड़ा फोलोवर बेस हैतब हमें भी काम में मजा आएगा और हम और भी बेहतरीन कंटेंट तैयार कर सकें जिससे विभिन्न विषयों पर आपको सारगर्भित एवं सरल अध्ययन सामग्री प्राप्त होती रहे. आखिरकार हम भी इंसान है और हमें भी निरन्तर कार्य करने के लिए कोई न कोई प्रेरणा की आवश्यकता होती है.

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Sunday, November 2, 2025

कोशिका (Cell)

 

कोशिका (Cell)

v     कोशिका जीवन की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है.  कोशिका विभिन्न पदार्थों का वह सबसे छोटा संगठित रूप है, जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से जीवन कहा जाता है.

v     एक अकेली कोशिका, जैसे बैक्टीरिया या यीस्ट, एक पूर्ण जीव के रूप में कार्य कर सकती है. अंग्रेजी शब्द सेल लैटिन शब्द 'सेला' से बना है जिसका अर्थ है 'एक छोटा कमरा'.

कोशिका विज्ञान या साईटोलोजी (Cytology)

v     कोशिकाओं के वैज्ञानिक अध्ययन को कोशिका विज्ञान या साइटोलॉजी कहा जाता है. इससे कोशिका की विकृतियों जैसे कैंसर इत्यादि का निदान करने में सहायता मिलती है. साइटोलॉजी शब्द सबसे पहले ऑस्कर हर्टविग ने 1892 में दिया था.

v     कोशिकाओं का एक ऐसा समूह जो एक विशिष्ट कार्य को करने के लिए संगठित होता है, उत्तक कहलाता हैं. ऊतकों के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) कहते हैं. यह जीव विज्ञान की एक शाखा है, जो ऊतकों की संरचना, व्यवस्था और कार्यों का अध्ययन करती है.

कोशिका की खोज

v     कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने 1665 में एक स्व-निर्मित सूक्ष्मदर्शी से की थी. उन्होंने कॉर्क की पतली काट में मधुमक्खी के छत्ते जैसी संरचनायें देखीं और उन्हें "कोशिका" (cell) नाम दिया.

v     जीवित माध्यम में कोशिका की खोज का श्रेय 1683 ई. में एंटोनी वैन लीउवेनहॉक नामक वैज्ञानिक को जाता है.

कोशिका सिद्धांत (Cell Theory)

v     श्लाइडेन और श्वान ने 1839 में कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें दो कथन महत्त्वपूर्ण है –

1. सभी जीवों का शरीर एक या एक से अधिक कोशिकाओं से बना होता है.

2. सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से मौजूद कोशिकाओं से ही होती है.

एककोशिकीय और बहुकोशिकीय जीव (Unicellular and Multicellular cell)

v     कुछ जीव जैसे बैक्टीरिया एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशिकीय जीव (Unicellular) कहते हैं, जबकि कुछ जीव जैसे मानव शरीर कई कोशिकाओं से बने होते हैं, उन्हें बहुकोशिकीय जीव (Multicellular) कहते हैं.

प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक कोशिकायें (Prokaryotic and Eukaryotic cells)

v     कोशिकायें दो प्रकार की होती हैं - प्रोकैरियोटिक कोशिकायें और यूकैरियोटिक कोशिकायें

प्रोकैरियोटिक कोशिकायें

यूकैरियोटिक कोशिकायें

ये अविकसित कोशिकायें हैं.

ये सुविकसित कोशिकायें हैं.

इसमें केंद्रक झिल्ली और केंद्रक का अभाव होता है.

केंद्रक झिल्ली और केंद्रक दोनों पाए जाते हैं.

गॉल्जी बॉडी, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम और माइटोकॉन्ड्रिया नहीं पाए जाते हैं.

सभी कोशिकांग सुविकसित होते हैं.

श्वसन कोशिका झिल्ली में होता है.

श्वसन माइटोकॉन्ड्रिया में होता है.

समसूत्री विभाजन नहीं होता है.

समसूत्री विभाजन होता है.

लाइसोसोम नहीं पाए जाते हैं.

लाइसोसोम पाए जाते हैं.

यह नीले-हरे शैवाल और बैक्टीरिया में पाया जाता है.

यह उच्च श्रेणी के जानवरों और पौधों में पाया जाता है.

 

सबसे बड़ी तथा सबसे छोटी कोशिका

v     प्रकृति में सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग का अंडा है, जबकि सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम कहलाती है.

v     सबसे छोटा कोशिकांग राइबोसोम है.

v     जंतु कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग केंद्रक होता है जबकि पादप कोशिका का प्लास्टिड होता है.

v     मानव शरीर की सबसे लंबी कोशिका न्यूरॉन या तंत्रिका कोशिका होती है.

कोशिकांग (Cell Organelles)

v     कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले अंगों को कोशिकांग कहते हैं.

v     कोशिका/प्लाज्मा झिल्ली (Cell Membrane)

v     यह कोशिका का सबसे बाहरी आवरण है, जो कोशिका के अवयवों को उसके बाहरी वातावरण से अलग करता है. कोशिका झिल्ली एक अर्ध-पारगम्य जीवित झिल्ली है, जो कोशिका के अंदर और बाहर चुनिंदा पदार्थों के प्रवेश और निकास की अनुमति देती है.

कोशिका भित्ति (Cell wall)

v     यह पादप कोशिकाओं में पाई जाती है. यह सेल्यूलोज़ से बनी होती है. सेल्यूलोज़ एक पॉलीसैकेराइड कार्बोहाइड्रेट है.

परिवहन

v     कोशिका के आर-पार जल, गैस और पोषक तत्वों के आदान-प्रदान को परिवहन कहते हैं. परिवहन दो प्रकार का होता है - सक्रिय परिवहन और निष्क्रिय परिवहन.

परासरण (Osmosis)

v     विलायक (जल) अणुओं का उच्च जल विभव से निम्न जल विभव की ओर संचलन. कोशिका में जल का परिवहन परासरण द्वारा होता है.

विसरण (Difusion)

v     गैस अणुओं का उच्च सांद्रता वाले क्षेत्र से निम्न सांद्रता वाले क्षेत्र की ओर संचलन. ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और अधिकांश लिपिड विसरण के माध्यम से कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं और बाहर निकलते हैं.

जीवद्रव्य (Protoplasm)

v     जीवद्रव्य कोशिका में पाया जाता है, जिसे वैज्ञानिक हक्सले ने जीवन का भौतिक आधार बताया है.

v     कोशिका भित्ति या कोशिका झिल्ली के भीतर पाए जाने वाले गाढ़े द्रव को जीवद्रव्य कहते हैं. जीवद्रव्य का नाम पुरकिंजे ने रखा था.

जीवद्रव्य का संघटन

जल

80%

प्रोटीन

15%

वसा

3%

कार्बोहाइड्रेट

1%

अकार्बनिक लवण

1%

 

जीवद्रव्य का विभाजन

v     जीवद्रव्य दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: कोशिका द्रव्य और केंद्रक द्रव्य

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)

v     कोशिका द्रव्य जल और लवण से निर्मित एक जेली जैसा पदार्थ होता है. इसी द्रव्य में सारे कोशिकांग तैरते या डूबे रहते हैं साथ ही साथ यह कोशिका के आकार को बनाए रखने में भी सहायक होता है.

केंद्रक द्रव्य (Nucleoplasm)

v     केंद्रक द्रव्य केंद्रक झिल्ली के अंदर पाया जाता है. यह एक हल्का पीला तरल पदार्थ है. यह कोशिकाद्रव्य से अधिक गाढ़ा होता है.

विषाणु (Virus)

v     वायरस प्रोटीन से निर्मित एक कैस्पिड होता है जिसमें जिनेटिक मैटेरियल (DNA या RNA) भरा होता है. लेकिन इनमें जीवित कोशिका की तरह सेल मेम्ब्रेन, साईटोप्लाज्म तथा सेल ओर्गैनल नहीं होते हैं, इसलिए इनमें जीवन के लिए आवश्यक तत्वों का अभाव होता है, इसलिए वायरस परपोषी कोशिका के बाहर निष्क्रिय होते हैं.

v     वे केवल तभी "सक्रिय" हो पाते हैं और अपना क्लोन बना पाते हैं, जब वे किसी जीवित कोशिका को संक्रमित करते हैं.  वायरस अधिक वायरल कण बनाने के लिए होस्ट सेल के रिसोर्सेज जैसे राइबोसोम और एंजाइमों का उपयोग करते हैं.

केन्द्रक झिल्ली (Nuclear Membrane)

v     केन्द्रक झिल्ली, एक बाई-लिपिड परत होती है जो यूकेरियोटिक कोशिकाओं में केन्द्रक को कवर करती है और उसकी सामग्री को साईटोप्लाज्म से अलग करती है. इसका मुख्य कार्य आनुवंशिक पदार्थ की रक्षा करना है.

अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Recticulam)

v     इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम  कोशिका के साईटोप्लाज्म के भीतर मेम्ब्रेन का एक नेटवर्क है जो प्रोटीन और लिपिड के संश्लेषण, प्रसंस्करण और परिवहन के लिए आवश्यक है.

इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम के प्रकार -

v     यह दो परस्पर जुड़े भागों में विभाजित होता है: रफ इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम  (RER) की सतह पर राइबोसोम होते हैं और यह प्रोटीन उत्पादन में शामिल होता है, और स्मूथ इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम  (SER), लिपिड, स्टेरॉयड और कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन करता है.

v     इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम  कोशिका के भीतर ट्रांसपोर्टेशन का कार्य करता है, कोशिका को मैकेनिकल सपोर्ट प्रदान करता है और कैल्शियम आयनों को स्टोर करता है.

राइबोसोम (Ribosomes)

v     राइबोसोम प्रोटीन सिंथेसिस यानी प्रोटीन निर्माण की फैक्ट्री है. यह मैसेंजर आरएनए (mRNA) पर दर्ज कोड को पढ़कर अमीनो एसिड्स को एक ख़ास सिक्वेंस में जोड़ता है जिससे पॉलीपेप्टाइड बांड के जरिये प्रोटीन निर्मित होता है.

v     यूकेरियोटिक सेल्स में, राइबोसोम साईटोप्लाज्म में तैरते हुए या रफ इंडोप्लाज्मिक रेक्टीकुलम  के उपर स्थित होते हैं, प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ये साईटोप्लाज्म में पाए जाते हैं.

वेंकटरमन रामकृष्णन

v     7 अक्टूबर, 2009 को भारतीय मूल के वैज्ञानिक वेंकटरमन रामकृष्णन को राइबोसोम के कार्य और संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए थॉमस ए. स्टीट्ज़ और अदा योनाथ के साथ रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनका यह शोध कार्य प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में मदद करेगा.

लाइसोसोम

v     लाइसोसोम में शक्तिशाली डाइजेस्टिव हाइड्रोलाइटिक एंजाइम होते हैं जो वेस्ट मैटेरियल और डेड सेल ओर्गैनल्स को डीकम्पोज करने में सक्षम होते हैं. यदि किसी कारण से लाइसोसोम फट जाय, तो उसके एंजाइम पूरी कोशिका को डाईजेस्ट कर सकते हैं. इसलिए लाइसोसोम को " सुसाईड बैग" कहा जाता है.  यह सेल्फ डाईजेशन, ऑटोलिसिस कहा जाता है.

वैक्यूल्स या रिक्तिका

v     रिक्तिका जल, न्यूट्रीएंट्स और वैस्ट मैटेरियल का स्टोरेज करते हैं. ये प्लांट सेल में वैक्यूल्स पूरी कोशिका के आयतन का 80% तक भाग घेरती है. प्लांट सेल के वैक्यूल्स के अंदर के द्रव को सेल सैप कहा जाता है, जिसमें जल, आयन और अन्य कार्बनिक अणु होते हैं.

v     एनिमल सेल में, वैक्यूल्स आमतौर पर छोटी, अधिक संख्या में और अस्थायी होती हैं, जो परिवहन, अपशिष्ट निष्कासन और भंडारण में मदद करती हैं. ये मेटाबोलिक वैस्ट के लिए "डंप हाउस" का कार्य करती हैं, जिससे कोशिका के शेष भाग को दूषित होने से बचाया जा सकता है.

माइटोकॉन्ड्रिया

v     माइटोकॉन्ड्रिया यूकेरियोटिक कोशिकाओं में कोशिकांग होते हैं. इन्हें "सेल पावरहाउस" भी कहा जाता है.

v     माइटोकॉन्ड्रिया सेलूलर रेस्पिरेशन के माध्यम एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ATP) यानी जैविक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं. यह एनर्जी ट्रांसफोरमेशन क्रेब्स साईकिल के माध्यम से निर्मित होता है.

v     माइटोकॉन्ड्रिया का अपना डीएनए (mtDNA) होता है. ये कैल्शियम भंडारण, संकेतन और कोशिका मृत्यु जैसी अन्य कोशिकीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

v     एक कोशिका में उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं के आधार पर सैकड़ों से हज़ारों माइटोकॉन्ड्रिया हो सकते हैं. उच्च ऊर्जा मांग वाली कोशिकाओं, जैसे मांसपेशी और तंत्रिका कोशिकाओं, में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं.

गॉल्जी बॉडी

v     गॉल्जी बॉडी वह कोशिकांग है जो प्रोटीन और लिपिड को संशोधित, संकुलित और परिवहन करता है. यह चपटी, झिल्ली से घिरी थैलियों से बना होता है जिन्हें सिस्टर्नी कहते हैं.

v     एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम से प्रोटीन गॉल्जी के सिस फेस में प्रवेश करते हैं, स्टैक से गुजरते हुए संसाधित होते हैं, और फिर ट्रांस फेस से पुटिकाओं में निकलकर अपने अंतिम गंतव्य, जैसे लाइसोसोम या कोशिका के बाहर स्राव, तक पहुँचते हैं. वसा का संचय गॉल्जी उपकरण के अंदर होता है.

प्लास्टिड

v     पौधों और शैवालों में द्वि-झिल्ली-बद्ध अंगक होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं, भोजन और वर्णकों का भंडारण करते हैं, और विभिन्न यौगिकों का संश्लेषण करते हैं.

क्लोरोप्लास्ट

v     एक प्रकार का प्लास्टिड, सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करने और उसे रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए क्लोरोफिल का उपयोग करता है, जिससे पौधे के लिए भोजन बनता है.

क्रोमोप्लास्ट

v     इसमें कैरोटीनॉयड जैसे वर्णक होते हैं, जो फूलों और फलों को रंग प्रदान करते हैं जिससे परागणकों को आकर्षित किया जाता है और बीज फैलाव में सहायता मिलती है.

ल्यूकोप्लास्ट

v     ये अवर्णक प्लास्टिड होते हैं जो पौधे के विभिन्न भागों जैसे जड़ों, कंदों और बीजों में स्टार्च (एमाइलोप्लास्ट के रूप में), लिपिड और प्रोटीन जैसे खाद्य भंडार संग्रहित करते हैं.

अन्य प्लास्टिड

v     कुछ प्लास्टिड, जैसे एलायोप्लास्ट, तेल और वसा के संश्लेषण और भंडारण में विशेषज्ञ होते हैं, जो ऊर्जा और कोशिका संरचना के लिए आवश्यक हैं.

केंद्रक (न्युक्लियस)

v     न्युक्लियस यूकेरियोटिक सेल्स में मेम्ब्रेन से कवर एक ओर्गैनल है जिसमे जेनेटिक मैटेरिअल (डीएनए) पाया जाता है.

v     यह सबसे बड़ा सेल ओर्गैनल होता है, जो कोशिका के कुल आयतन का लगभग दसवां हिस्सा कवर करता है.

v     यह सेल के कंट्रोल सेंटर के रूप में कार्य करता है. यह जेनेटिक इंस्ट्रक्शन को संजोता है और डीएनए रेप्लिकेशन और ट्रांसक्रिप्शन जैसी कोशिका प्रक्रियाओं का प्रबंधन करता है.

क्रोमोसोम (गुणसूत्र)

v     गुणसूत्र को अंग्रेजी में क्रोमोसोम कहते हैं जो शब्द दो शब्दों क्रोमा = विशेषता + सोमा = धागा.

v     क्रोमोसोम किसी जीव का जेनेटिक मैटेरिअल है.

v     क्रोमोसोम हमेशा पेयर्स में पाए जाते हैं. प्रत्येक जीव में क्रोमोसोम की एक निश्चित संख्या होती है जो एक जोड़ी से लेकर सौ जोड़े तक भिन्न होती है. प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में क्रोमोसोम पेयर्स में नहीं होते हैं.

v     क्रोमोसोम अंग्रेजी अक्षर X के आकार के होते हैं, प्रत्येक क्रोमोसोम दो क्रोमैटिडों से बना होता है. एक को बायाँ क्रोमैटिड और दूसरे को दायाँ क्रोमैटिड कहा जाता है.

v     क्रोमोसोम डीएनए से बने होते हैं जो हिस्टोन नामक प्रोटीन के चारों ओर कसकर लिपटे होते हैं.

v     क्रोमोसोम के प्रत्येक जोड़े को डायपलोयेड कहा जाता है.

v     सबसे अधिक क्रोमोसोम हर्मिट केकड़े में (127 पेयर्स क्रोमोसोम) होते हैं.

v     मनुष्यों के केन्द्रक में 23 पेयर्स क्रोमोसोम जोड़े गुणसूत्र होते हैं, जिनमें से 22 जोड़े कायिक क्रोमोसोम (ऑटोसोम) और 23 वाँ पेयर सेक्स क्रोमोसोम होता है.

जीन

v     जीन जिनेटिक्स की सबसे छोटी यूनिट होती है, अर्थात एक जीन एक गुण को निर्धारित करता है. मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में लगभग 20,000 से 30,000 जीन होते हैं.

v     क्रोमोसोम एक लंबा तंतु यानी फाईबर होता है, जिस पर डी एन ए का एक खास सिक्वेंस में संयोजित होते हैं. डी एन ए के इस खास सिक्वेंस को जीन कहते है.

डीएनए

v     डीएनए, या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid), डबल हेलिक्स अणु होता है. इसकी दो लड़ियां डीऑक्सीराइबोज सुगर (पेन्टोज) और फॉस्फोरिक एसिड से बनी होती हैं. ये लड़ियां चार नाइट्रोजनस बेस (एडेनीन, गुआनिन, साइटोसिन और थाइमिन) के जोड़े से जुड़ी होती हैं. एडेनीन हमेशा थाइमिन के साथ और गुआनिन हमेशा साइटोसिन के साथ जुड़ता है.

v     डीएनए जेनेटिक्स इन्फोर्मेशन को एक जेनरेशन से दूसरी जेनेरेशन तक कम्युनिकेट करने में सक्षम होते हैं.

न्यूक्लियर डीएनए एवं माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए

v     अधिकांश डीएनए कोशिका न्यूक्लियस में स्थित होता है, जहाँ इसे न्यूक्लियर डीएनए कहा जाता है, लेकिन डीएनए की थोड़ी मात्रा माइटोकॉन्ड्रिया में भी पाई जाती है, जहाँ इसे माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए या mt-DNA कहा जाता है.

आर एन ए (राइबोज न्यूक्लिक एसिड)

v     आरएनए प्रोटीन सिंथेसिस में सहायक होते हैं. आर एन ए एक सिंगल स्ट्रेंडेड न्यूक्लिक एसिड है जो सभी जीवित कोशिकाओं में पाया जाता है. यह काफी कुछ डी एन ए के समान होता है, लेकिन इसमें डीऑक्सीराइबोज के स्थान पर राइबोज सुगर और थाइमिन (टी) के स्थान पर यूरैसिल (यू) बेस होता है.

प्रकार और कार्य

v     मैसेंजर आरएनए (mRNA): इसका काम केन्द्रक में स्थित डीएनए से राइबोसोम तक जीन कोड पहुँचाना होता है.

v     राइबोसोमल आरएनए (rRNA): यह राइबोसोम का फंक्शनल यूनिट है जो प्रोटीन निर्माण करता है.

v     ट्रांसफर आरएनए (tRNA): एमआरएनए अनुक्रम के आधार पर अनुवाद के दौरान राइबोसोम में सही अमीनो अम्ल पहुँचाता है.

रेट्रोवायरस

v     कुछ वायरस ऐसे होते हैं जिनमें डीएनए का कार्य आरएनए करते हैं, इस प्रकार के वायरस को रेट्रोवायरस कहा जाता है. जब ये किसी कोशिका को संक्रमित करते हैं, तो वे अपनी RNA को DNA में बदलने के लिए एक एंजाइम (रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेस) का उपयोग करते हैं और फिर यह DNA मेजबान कोशिका के DNA में एकीकृत हो जाता है. HIV (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) एक प्रसिद्ध रेट्रोवायरस का उदाहरण है.

डीएनए रेप्लिकेशन

v     डीएनए अणु की एक समान रेप्लिका बनाने की प्रक्रिया. यह कोशिका विभाजन से पहले होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संतति कोशिकाओं को जेनेटिक इन्फोर्मेशन का पूरा सेट प्राप्त हो. इसमें डीएनए के डबल हेलिक्स का खुलना और दो नए डीएनए स्ट्रेंड्स का निर्माण शामिल है.

ट्रांसक्रिप्शन

v     प्रोटीन सिंथेसिस का पहला चरण, जहाँ डीएनए के एक खंड से जेनेटिक इन्फोर्मेशन को एक m-RNA अणु में कॉपी किया जाता है. यह प्रक्रिया कोशिका के केंद्रक में संपन्न होती है.

रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन

v     रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस नामक एक एंजाइम, एक आरएनए टेम्पलेट से कोम्पिलीमेंट्री डीएनए (सीडीएनए) के एक स्ट्रैंड का निर्मित करता है. यह प्रक्रिया स्टैण्डर्ड ट्रांसक्रिप्शन के विपरीत है, जहाँ डीएनए की आरएनए में रेप्लिका बनाई जाती है, और यह एचआईवी जैसे रेट्रोवायरस की रेप्लिका बनाने के लिए आवश्यक है.

ट्रांसलेशन

v     प्रोटीन सिंथेसिस का दूसरा चरण, जहाँ mRNA सिक्वेंस को अमीनो एसिड्स के एक विशिष्ट सिक्वेंस का निर्माण करने के लिए डिकोड किया जाता है. यह प्रक्रिया राइबोसोम पर साईटोप्लाज्म में होता है. पॉलीपेप्टाइड चैन बनाने के लिए आनुवंशिक कोड का उपयोग करता है.

आनुवंशिक कोडिंग और कोडॉन

v     नियमों का वह समूह जिसके द्वारा आनुवंशिक पदार्थ (डीएनए या आरएनए अनुक्रम) में एन्कोड की गई जानकारी जीवित कोशिकाओं द्वारा प्रोटीन में अनुवादित की जाती है.

v     कोडॉन: एक mRNA अणु में तीन न्यूक्लियोटाइडों का एक अनुक्रम जो अनुवाद के दौरान एक विशिष्ट अमीनो अम्ल या एक विराम संकेत से मेल खाता है. आनुवंशिक कोड कोडॉन की एक श्रृंखला में पढ़ा जाता है, जिसमें प्रत्येक कोडॉन एक विशिष्ट अमीनो अम्ल निर्दिष्ट करता है.